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स्वास्थ्य सेवा पर खर्च बढ़ाया जाना चाहिए
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- 2024 में केंद्र ने राज्यों के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत चलाई जा रही 2 लाख सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का मूल्यांकन किया है। इनमें से लगभग 80% बुनियादी ढांचे, मैनपावर और उपकरणों की न्यूनतम आवश्यक मानकों को पूरा करने में विफल पाई गई हैं।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017, आर्थिक सर्वेक्षण (2021, 2022-23) और 15वें वित्त आयोग ने सरकारी स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 2.5% तक बढ़ाने की बार-बार सिफारिश की थी। इसके बावजूद 2024-25 का स्वास्थ्य बजट 1.9% पर स्थिर रहा है।
- यदि हम विदेशों से तुलना करें, तो दक्षिण अफ्रीका 4.3%, ब्राजील 4% और चीन 3% से अधिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं।
- भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों के अनुसार, प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के पास 20-30 हजार लोगों की सेवा करने की सुविधाएं होती हैं। लेकिन यहाँ 36 हजार से ज्यादा लोग आते हैं।
- विशेष स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत और भी खराब है।
- क्यूरेटिव या उपाचारात्मक स्वास्थ्य सेवा; जिसमें सुरक्षात्मक स्वास्थ्य सेवा भी आती हैं, को कुल स्वास्थ्य व्यय का केवल 14% ही मिलता है। इससे स्वास्थ्य सेवा में बहुत कमी आती है। एनीमिया, मधुमेह और हृदय संबंधी रोगों के मुद्दों पर भारत में जागरुकता अभियान चलाए जाने की बहुत जरूरत है।
- पूरे एशिया में भारत की 14% पर स्वास्थ्य मुद्रास्फीति दर सबसे अधिक है। इसे कम किया जाना चाहिए। साथ ही स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम को 18% जीएसटी से छूट दी जानी चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 जनवरी, 2025
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