सुशासन में सहयोग के पहिए
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किसी भी देश की विकास गतिविधियों के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप एक प्रमुख घटक है। साथ ही, देश के विकास के लिए सरकारी तंत्र के साथ, समुदायों और गैर सरकारी अनौपचारिक संस्थानों का बहुत महत्व है। कंपनी अधिनियम की धारा 135, एक निश्चित स्तर के कॉरपोरेट्स को अपने शुद्ध लाभ का कम-से-कम 2% विकास-क्षेत्र को देने के लिए बाध्य करती है। यह कानून कॉरपोरेट्स को गैर सरकारी संगठनों व अन्य नागरिक समूहों के साथ सहयोग करने को प्रोत्साहन देता है। सरकार द्वारा ऐसे संगठनों को मिलने वाले विदेशी अनुदान पर रोक लगाने के बाद कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी अनुदान बहुत जरूरी हो गया है।
गैर सरकारी संगठनों के प्रयास के कुछ अन्य महत्वपूर्ण बिंदु –
- गैर सरकारी संगठनों के दशकों के प्रयास से सूचना के अधिकार या आरटीआई को अमल में लाया जा सका। इस कानून से सरकारी कामकाज में काफी पारदर्शिता आई है।
- आपदाओं के दौरान जिला स्तर पर अनेक गैर-सरकारी और सिविल सोसायटी संगठनों की मदद से ही तुरंत राहत कार्य शुरू किये जाते हैं। ये संगठन, सरकारी योजनाओं के वास्तविक लाभ को नागरिकों तक पहुंचाने का काम करते हैं। ऐसी मदद से सरकार अपना ध्यान प्रशासन पर लगा सकती है।
शोध से पता चलता है कि गैर सरकारी संगठनों, सरकार और कारपोरेट्स के बीच तालमेल से ही सुशासन का पहिया घूमता है। वर्तमान सरकार के साथ चल रहे एनजीओ और सिविल सोसायटी संगठनों के आपसी विरोध के बावजूद उम्मीद की जा सकती है कि ये संगठन सरकार, कॉरपोरेट्स और नागरिकों के बीच अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकेंगे।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित लिलो चाको के लेख पर आधारित। 4 जनवरी, 2022