सुरक्षा बलों पर भारी पड़ती मणिपुर की अस्थिर सीमा

Afeias
26 Nov 2021
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हाल ही में मणिपुर के विद्रोहियों ने चुरचांदपुर जिले में असम राइफल्स के काफिले पर घात लगाकर हमला किया था। इसमें एक कमांडिंग ऑफिसर, उनकी पत्नी और उनके 6 साल के बेटे सहित पांच सैनिकों की मौत हो गई। यह हमला 2015 के हमले की याद दिलाता है, जिसमें 18 सैन्यकर्मी मारे गए थे।

यद्यपि एक दशक से मणिपुर में होने वाली विद्रोही गतिविधियों की गति धीमी पड़ गई है, लेकिन म्यांमार के चिन राज्य से सक्रिय विद्रोही समूहों की जबरन वसूली और नशीले पदार्थों के माध्यम से चलने वाली समानांतर अर्थव्यवस्था के कारण मणिपुर में अस्थिरता बनी हुई है।

हमले का कारण –

म्यांमार में बदली हुई राजनीतिक स्थिति में सैन्य समूह जुंटा स्वयं के लिए चीन को प्रमुख प्रायोजक के रूप में गिनता है। हो सकता है कि यह चीन से प्रेरित होकर मणिपुर के विद्रोहियों को सीमावर्ती क्षेत्रों के करीब शिविर लगाने को मजबूर करना चाहता हो, इसलिए उसने इस हमले की साजिश रची हो। अगर ऐसा है, तो भविष्य में चीनी संपर्क के चलते और भी परेशानियां खड़ी की जा सकती है। कथित तौर पर अवैध चीनी हथियार भी विद्रोही समूहों के पास जा रहे हैं।

हाल ही में चीन और म्यांमार से लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना की दो डिविजनों में की गई हेरफेर भी पूर्वोत्तर उग्रवादियों के सक्रिय होने का कारण हो सकती है।

उग्रवाद से जूझ रही भारतीय सेना के दुश्मनों को इसमे लाभ ही होगा। मणिपुर में मैतेई, नागा और कुकी-जो जैसे सामाजिक समूहों की विविधता है। इनके प्रभाव के अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में, इनके नाम पर कई विद्रोही समूहों ने सशस्त्र श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास किया है। इससे शांति प्रयासों की जटिलता बढ़ गई है।

अवैध गतिविधियों के लिए कोई ठोस समाधान न निकालते हुए शांति की बात करने की दोहरी चुनौतियां सुरक्षा प्रतिष्ठानों की कठोर परीक्षा लेती रहती हैं। अब उम्मीद यही है कि यहां मिली कोई भी सफलता भारत को लाइन ऑफ कंट्रोल की लड़ाई पर अपने संसाधनों को बेहतर ढंग से केंद्रित करने में मदद कर सकती है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 नवम्बर, 2021