स्थानीय सरकार को ठीक करें

Afeias
25 Nov 2022
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हाल ही में गुजरात के मोरबी की मच्छू नदी में हुई पुल टूटने की दुर्घटना अत्यंत दुखद है। यह त्रासदी हमारे शहरी निकायों के काम काज के तरीके और उसकी सतर्कता व तत्परता का पुनर्मूल्यांकन करने का अवसर उत्पन्न करती है। इस दुर्घटना से पहले बेंगलुरू में बाढ़ आई थी, जिसमें शहर के संभ्रांत माने जाने वाले रिहायशी इलाकों में पानी भर गया था। दोनों ही घटनाएं शहरी प्रशासन की विफलता को दिखाती हैं। गुजरात और कर्नाटक जैसे उन्नत राज्यों में अगर नगर प्रशासन की यह हालत है, तो कहीं और स्थिति की कल्पना की जा सकती है। इस मामले में तीन पहलुओं पर काम किया जाना जरूरी है –

1) नगरीय प्रशासन का वित्तीय स्वास्थ्य –

  • नगरीय निकायों के स्वयं के वित्तीय स्रोतों में निरंतर गिरावट आ रही है।
  • हाल के दशकों में राजकोषीय अंतरण के बढ़ने के बावजूद स्थिति इतनी खराब हैए क्योंकि नगर निगमों के बजट का एक बड़ा हिस्सा पिछले वर्षों का बकाया चुकाने में चला जाता है।

2) खरीद प्रक्रिया और उसके प्रवर्तन में कमी –

  • मोरवी की दुर्घटना से पता चलता है कि ठेकेदारों/उपठेकेदारों का चुनाव करने में कमजोरी है। यानि पारदर्शिता की कमी है।

3) नगर निकायों की सेवा प्रदान करने की क्षमता –

  • उपरोक्त दो विफलताओं के साथ ही नगर निकायों में जिम्मेदारी के भार के अनुसार कर्मचारियों की कमी है। इसके चलते नागरिकों को समय पर उपयुक्त सेवाएं नहीं मिल पाती हैं। जवाबदेही की गंभीर समस्या उन्नत हो जाती है।
  • सेवा देने के मामले में कर्मचारियों को पर्याप्त प्रशिक्षण भी प्राप्त नहीं है।

क्या किया जाना चाहिए –

  • राज्यों को वित्तीय तरलता के लिए स्वयं के धन स्रोतों को बढ़ाना चाहिए। हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स मिनिस्ट्री द्वारा 2020 में पेश किया गया प्रापर्टी टैक्स टूल किट इसके लिए स्टेप बाय स्टेप निर्देश देता है।
  • म्यूनिसिपल लाइसेंस, विभिन्न शुल्क और भूमि से आय अर्जित करने का भरपूर प्रयास किया जाना चाहिए।
  • अनुपात विश्लेषण के साथ अकाउंटिंग की जाए। निकाय की पूर्ण भागीदारी के साथ वास्तविक बजट बनाना और समय पर लेखा परीक्षा की जानी चाहिए।
  • नियमों, उपनियमों और नियामकों के अधीन ही संपत्ति अर्जित की जाए और रखरखाव किया जाए। इसके अंतर्गत सुरक्षाए पर्यावरण और ऊर्जा से संबंधित ऑडिट आते हैं। इनका उल्लेख मॉडल म्यूनिसिपल कानून 2003 और यूडीपीएफआई दिशानिर्देश 1996 में किया गया है। खरीद और अनुबंधों के प्रवर्तन को प्रभावी बनाने के लिए इन्हें अपडेट किया जाना चाहिए।
  • अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए यथा आवश्यकता अनुसार कर्मचारियों की नियुक्ति होनी चाहिए।
  • नियमित जांच के लिए योजना होनी चाहिए।
  • नगर निकायों के चुने हुए नेताओं और अधिकारियों के बीच समन्वय के लिए समय-समय पर बैठकें होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने भारत@2047 के अंतर्गत भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में देखने का लक्ष्य रखा है। इसका आधार जन-केंद्रित नगर-प्रशासन हो सकता है। इसे संभव बनाने के लिए नगर निकायों को सशक्त बनाने पर जमकर काम किय जाना चाहिए। उम्मीद की जा सकती है हमारे नीति-निर्माता इस ओर अधिक ध्यान दे सकेंगे।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित  के.के.पांडे के लेख पर आधारित। 3 नवंबर, 2022