स्थानीय निकायों को सशक्त बनाया जाए

Afeias
17 Feb 2022
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हाल ही में आरबीआई ने राज्यों से जुड़े अपने अध्ययन की रिपोर्ट जारी की है। इसमें महामारी से जूझने में स्थानीय निकायों की महत्वपूर्ण भूमिका और उनके घटते राजस्व स्रोतों पर टिप्पणी की गई है। यह भी कहा गया है कि नागरिक निकायों की कार्यात्मक स्वायत्तता में वृद्धि होनी चाहिए। मजेदार तथ्य है कि आरबीआई ने इन निकायों की राजस्व वृद्धि के तरीकों पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

  • राजस्व की कमी

– वर्ष 2020-21 के एक आरबीआई सर्वेक्षण से ही पता चलता है कि स्थानीय निकायों के राजस्व में 70% की कमी आई है, जबकि उनका व्यय 71.2% बढ़ा है।

– आरबीआई की रिपोर्ट से ही पता चलता है कि संपत्ति कर के सीमित कवरेज के कारण नगरपालिकाओं की आय सीमित है। ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकॉनॉमिक कॉआपरेशन एण्ड डेवलपमेन्ट डेटा से भी पता चलता है कि भारत में संपत्ति कर संग्रहण की दर सबसे कम है।

  • स्थानीय निकायों के प्रति सौतेला व्यवहार क्यों ?

 – नीति निर्माण में स्थानीय निकायों को राज्य सरकारों का अधीनस्थ समझे जाने की परंपरा अभी भी चली आ रही है।

– शहरी विकास को राज्य का विषय माना जाता है, जो राज्यों के राजनीतिक और लोकतांत्रिक समीकरण से अधिक जुड़ा हुआ है।

– संविधान के 74 वें संशोधन में स्थानीय निकायों के सशक्तीकरण के लिए 12वीं अनुसूची के 18 प्रावधानों को उन्हें स्थानांतरित किया गया था। इसमें वित्तीय सशक्तीकरण का कोई उल्लेख नहीं है। केवल उनके ढांचे और भूमि-कानून में लचीलेपन के साथ नगरों में आपसी प्रतिस्पर्धा के साथ निवेश को बढ़ाना ही इसका उद्देश्य रहा।

केवल केरल ही ऐसा राज्य रहा, जहाँ के बजट के 40% को स्थानीय निकायों के लिए रखा गया था। इससे स्थानीय प्रशासन को एक नई गति मिल सकी।

  • कार्यात्मक स्वायत्तता

– आरबीआई की रिपोर्ट, शहर के निकायों को जिस स्वायत्तता की बात करती है, वह कार्यों, वित्त और अधिकारों के हस्तांतरण से मिल सकती है। इनके बिना यह संभव नहीं है।

– देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग दो-तिहाई या हिस्सा शहरी केंद्रों से आता है। मूल्य वर्धित कर और अन्य केंद्रीकृत कराधान प्रणालियों से पहले शहरों की कमाई हुआ करती थी। इसका एक उदाहरण चुंगी है। लेकिन इसे वापस ले लिया गया, और 15वें वित्त आयोग ने जनसांख्यिकीय आधारित फार्मूले पर निधि का आवंटन शुरू कर दिया। जीएसटी के कारण अब निकायों की स्थिति और भी खराब हो गई है।

  • क्या किया जाना चाहिए ?

– शहरों को शासन के महत्वपूर्ण केंद्रों के रूप में माना जाना चाहिए। केरल के उदाहरण से समझा जा सकता है कि लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के कितने बेहतर परिणाम हो सकते हैं।

– संसाधनों पर पर्याप्त ध्यान देकर उन्हें नियोजित विकास में लगाया जाना चाहिए।

– हमारे शहर जलवायु परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हैं। इसके प्रभाव से निपटने के लिए शहरों को मात्रात्मक और गुणात्मक डेटा के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं, ताकि कमजोर समुदायों को ध्यान में रखते हुए अनुकूल रणनीतियां बनाई जा सकें।

– केंद्र से अनुदान को बढ़ाया जाना चाहिए। शहरों को अपना मसौदा तैयार करने के लिए कहा जाना चाहिए।

– लोगों को निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। इससे पारदर्शिता आएगी।

– शहरों में मेयर आदि प्रमुख पदाधिकारियों का कार्यकाल बढ़ाया जाना चाहिए।

आरबीआई की रिपोर्ट में शहरों का उल्लेख किया जाना मायने रखता है। ये देश के शासन का महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। इनके सशक्तीकरण पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित तिकेंद्र सिंह पवार के लेख पर आधारित। 20 जनवरी, 2022