शिक्षा पर केंद्र बनाम राज्य के नियंत्रण का मुकदमा
To Download Click Here.
हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें शिक्षा को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में स्थानांतरित किए जाने को चुनौती दी गई है। संविधान के 42वें संशोधन (जिसे ‘मिनी कांस्टीट्यूशन’ के नाम से भी जाना जाता है) अधिनियम के द्वारा शिक्षा को राज्य सूची से हटाया गया था। तब से लेकर आज तक शिक्षा के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण बदलाव किए जा चुके हैं।
कुछ अन्य कारण –
- मेडिकल प्रवेश परीक्षांए अनेक स्तरों पर अलग-अलग राज्यों में हुआ करती थीं। अब एक राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा ली जाती है।
- अभी भी राज्यों को छूट है कि वे अपने स्तर पर विश्वविद्यालय और स्कूल के पाठ्यक्रम चला सकें।
- शिक्षा में निजी क्षेत्र को पर्याप्त छूट दी गई है।
- राज्यों को ऐसी स्वतंत्रता के साथ ही यूजीसी यानि यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन अभी भी स्नातक, स्नातकोत्तर एवं शोध स्तरीय कार्यक्रमों का पुनर्गठन कर रहा है।
- अपने स्तर पर राज्य स्कूलों को क्लस्टर करने की कोशिश कर रहे हैं। छोटे स्कूलों को बंद कर रहे हैं।
विवादास्पद बिंदु यह है कि कोई भी इकाई पूर्ण नियंत्रण का दावा नहीं कर सकती है। यह एक विविधरंगी पारिस्थितिकी तंत्र है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच अभी भी एक बड़ा मुद्दा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा पर संयुक्त सरकारी व्यय के 6% के लक्ष्य के विरूद्ध 2021-22 के जीडीपी में 3% का ही बजट था। राज्यों को चाहिए कि वे इस हेतु केंद्र सरकार पर दबाव बनाएं।
दूसरी ओर शिक्षा को राज्य सूची में शामिल करने से शिक्षा पर खर्च बढ़ाने की केंद्र की जरूरत कम हो सकती है। लेकिन साथ ही राज्य सरकारें भी अपने आप से पूछें कि राज्य के विश्वविद्यालयों और स्कूलों को कम छात्र क्यों मिल रहे है, जबकि केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में लंबी लाइन है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना ही सरकारों का परम लक्ष्य होना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 10 नवबंर, 2022