शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गेनाइजेशन की बैठक की चुनौतियां
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हाल ही में समरकंद में शंघाई कॉपोरेशन ऑर्गेनाइजेशन के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद् का शिखर-सम्मेलन संपन्न हुआ है। यूक्रेन युद्ध की शुरूआत से लेकर अब तक का यह पहला बड़ा शिखर सम्मेलन था, जिसमें रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी शामिल हुए थे। कोविड-19 महामारी और ताइवान पर हुए तनाव के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए भी यह पहली बड़ी अंतरराष्ट्रीय बैठक थी। इसी कड़ी में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण सम्मेलन था, क्योंकि यूक्रेन युद्ध और 2020 के चीन-सीमा संघर्ष के बाद दोनों देशों के राष्ट्रपतियों से उनका पहली बार सामना हो रहा था।
सम्मेलन के कुछ मुख्य बिंदु –
- क्षेत्रीय जुड़ाव पर संगठन के नए समझौतों के अलावा, चार मध्य एशियाई देशों (कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान) सहित ईरान को सदस्य रूप में शामिल करने पर चर्चा हुई।
- पश्चिम और दक्षिण एशिया में व्यापार, पर्यटन और आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए संगठन में भागीदारों का दायरा बढ़ाने का प्रयत्न किया गया।
भविष्य की रणनीति –
अगले वर्ष भारत को संगठन के अध्यक्ष के नाते शिखर सम्मेलन संपन्न करना है। तनाव के बावजूद भारत को चीन और पाकिस्तान सहित सभी एससीओ सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। यूरेशियन क्षेत्र से अपने संपर्कों के लिए भारत को ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए फिर से प्रयास करना होगा। वह अभी भी ग्वादर से होकर जाने वाले मार्गों में चीन-पाकिस्तान समर्थित पारगमन मार्गों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है। आतंकवाद के मुद्दे पर संगठन के देशों से आतंकवादी समूहों की एक नई समेकित सूची बनाने पर बात करनी होगी।
इस बीच भारत को विभिन्न पक्षों पर अपने संबंधों को संतुलित करना होगा। क्वाड एवं अन्य समूहों के पश्चिमी भागीदारों को आश्वस्त करना होगा। संगठन की मेजबानी करने तक भारत के लिए अनेक चुनौतियां भी हैं, और अवसर भी। भारत को इसका लाभ उठाना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 सितम्बर 2022