संयुक्त राष्ट्र परिषद् में भारत के लिए सुअवसर
Date:28-01-21 To Download Click Here.
भारत को मिलने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की अस्थाई सदस्यता का यह तीसरा अवसर है। 1991-92 और 2011-12 के दौरान रहे इस अवसर की तुलना में इस समय भारत के हितों में और उसके अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों में बहुत बदलाव आ चुका है। भारत का दृष्टिकोण प्रतिक्रियाशीलता से बदलकर सक्रियता की ओर अधिक हो गया है। इससे सुरक्षा परिषद् में उसकी भूमिका अधिक उद्देश्यपूर्ण और व्यावहारिक हो गई है। भारत अब अपने व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्यों को सुरक्षा परिषद् के साथ जोड़कर चलने की मंशा रखता है।
सुरक्षा परिषद में अपने कार्यकाल को उत्पादक और प्रभावशाली बनाने के लिए फिलहाल भारत के पास पाँच उद्देश्य हैं –
(1) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् को प्रभावशाली बनाना, उसका पहला उद्देश्य होना चाहिए। सुरक्षा परिषद् का गठन इस प्रकार से किया गया था कि उसकी पाँचों महाशक्तियां एक मुट्ठी की तरह काम करें। शीत युद्ध के दशकों के दौरान पांच स्थायी सदस्यों के बीच एकमत होना मुश्किल था। 1990 के दशक में महान शक्ति सहयोग के एक संक्षिप्त क्षण के बाद, हम अब प्रतिस्पर्धा के युग में वापस आ गए हैं। लेकिन इस शक्ति-प्रतिद्वंदिता के बीच भारत के लिए एक बड़ी भूमिका का निर्वाह करने के लिए पर्याप्त जगह होगी।
(2) शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से ही भारत की अनके मांगों में से सुरक्षा परिषद् में अधिक प्रतिनिधित्व भी एक मांग रही है। चीन, भारत की स्थायी सदस्यता की मांग में हमेशा बाधक बनता रहा है। बहुत से देश चाहते हैं कि ब्राजील, जर्मनी और जापान की सदस्यता की मांग के साथ भारत को भी अपनी मांग जारी रखनी चाहिए।
(3) चीन के साथ बढ़ती शत्रुता से निपटने के लिए भारत के पास कोई विकल्प नहीं है। भारत तो चीन के साथ एक बहुध्रवीय दुनिया बनाने के लिए उत्सुक था। लेकिन आज वह चीन के इर्द-गिर्द घूमते एक ध्रुवीय एशिया से अलग खड़ा है। उस पर चीन के साथ चल रहे सीमा-विवाद का संकट मुंह बाए खड़ा है।
(4) सुरक्षा परिषद् में शांति और सुरक्षा जैसे मुद्दे भारत को क्वाड जैसे समूहों की मजबूती की शक्ति देंगे। अपने इस कार्यकाल को भारत, फ्रांस और जर्मनी के साथ सुरक्षा क्षेत्र में मजबूती लाने और ब्रिटेन के साथ एक नए अंतरराष्ट्रीय मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए उपयोग में ला सकता है। भारत को रूस के साथ भी अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर गहन बातचीत का अवसर मिल सकता है।
(5) भारत को विश्व के दक्षिण में बसे अपने वैश्विक साझेदारों के साथ, सुरक्षा परिषद् में अपनी शांति और सुरक्षा के मुद्दे को फिर भी उजागर करना चाहिए। विश्व के अनेक द्वीपसमूहों को ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ते समुद्री स्तर से अस्तित्व की चिंता है। अपने निकट के दो द्वीपसमूहों की इस चिंता के लिए भारत को सक्रिय कार्य करना चाहिए।
अफ्रीका, दूसरी प्राथमिकता है। सुरक्षा परिषद् की आधे से अधिक बैठकें अफ्रीका में शांति और सुरक्षा पर केंद्रित रही हैं। भारत के लिए यह कार्यकाल एक अच्छा अवसर है, जब वह अफ्रीका में द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अपने सहयोग का प्रस्ताव दे सके।
अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् सहित विश्व की अन्य शक्तियों का भी यह दायित्व है कि वे यह सुनिश्चित करें कि अमेरिका-चीन में होने वाला समान आधार और सहयोग दूसरों की कीमत पर न हो।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित सी राजा मोहन के लेख पर आधारित। 5 जनवरी, 2021