संवैधानिक शासन के मूल तत्व
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इस वर्ष 26 नवंबर को भारत के संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। यह उन मूल संवैधानिक मूल्यों की पहचान करने का एक उपयुक्त समय है, जिन्होंने भारत की संवैधानिक संस्कृति को आकार दिया है।
ये पांच मूल्य हैं –
1) लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति लोगों का सम्मान-भारत में 1949 में जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष थी, जो आज 70 वर्ष हो गई है। जीवन स्तर और जीवन की गुणवत्ता में असाधारण सुधार ने आम भारतीयों को लोकतांत्रिक संस्थाओं की भूमिका और योगदान का सम्मान करने का कारण दिया है।
2) निर्वाचित सरकारों का सुचारू रूप से हस्तांतरण – पिछले सात दशकों से होते आए अनेक स्तर के चुनावों के अंत में सत्ता के सहज हस्तांतरण के विचार के प्रति हर राजनीतिक दल की गहरी प्रतिबद्धता है। दुनिया के अनेक देशों में इस प्रकार की प्रतिबद्धता देखने को नहीं मिलती है।
3) न्यायालयों के माध्यम से अधिकारों और स्वतंत्रता की सुरक्षा नागरिकों के अधिकारों का मसौदा इस चेतना के साथ तैयार किया गया था कि सरकारी तंत्र उनका हनन न कर सके।
4) संघवाद – देश की असाधारण विविधता को देखते हुए संविधान में राज्यों और लोगों की विशिष्ट पहचान, परंपरा और संस्कृति की पर्याप्त रक्षा की गई है। पिछले सात दशकों में संघवाद के विचार की मजबूती दो स्तर पर दिखाई देती है – (1) राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों का उदय – (2) राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना के विकास में उनका योगदान।
5) लोकतंत्र में विश्वास जगाने में मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका भारतीय मीडिया के विचार और दृष्टिकोण पूरे देश में अलग-अलग भाषाओं में उत्पन्न होते हैं। यह विभिन्न रूपों में संचार माध्यमों के द्वारा नागरिकों को सूचित करते हैं। इसी प्रकार का काम नागरिक समाज भी करता है। लोकतंत्र में विश्वास जगाने में दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित सी.राज कुमार के लेख पर आधारित। 22 अक्टूबर, 2024