संविधान की प्रस्तावना में ‘बंधुत्व’ का जोड़ा जाना

Afeias
09 Nov 2020
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Date:09-11-20

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संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद को 27 फरवरी 1948 को संविधान का मसौदा सौंपते हुए बी आर अंबेडकर ने लिखा था कि मसौदा समिति ने प्रस्तावना में ‘बंधुत्व’ पर एक खंड जोड़ा था (यह उद्देश्य संकल्प का हिस्सा नही था), क्योंकि ”भारत में भ्रातृत्व और सद्भाव की आवश्यकता इससे पहले इतनी अधिक कभी नहीं रही।”

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे चार नैतिक स्तभों में से बंधुत्व को ही सबसे कम समझा गया। यह सबसे कम चर्चा का विषय रहा और इसका ही सबसे कम अभ्यास किया गया है।

एक नजर ‘बंधुत्व’ के इतिहास पर

विद्वानों ने लंबे समय से भारतीय संविधान के निर्माण में कुछ मील के पत्थरों की चर्चा की है। इनमें से एक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 1931 का ‘मौलिक अधिकार’ का संकल्प था।

संविधान की यात्रा का अगला मील का पत्थर 1936 का अम्बेडकर का पत्र था, जहाँ उन्होंने लिखा था कि ”आपका आदर्श समाज क्या है ? यदि आप जाति नहीं चाहते हैं, तो यह प्रश्न पूछा जाना जरूरी है। अगर आप मुझसे पूछें, तो मेरा आदर्श एक ऐसा समाज होगा, जहाँ स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व होगा।” इतिहास के आलोक में आंबेडकर ही वह हस्ती हैं, जिन्होंने संविधान संबंधी चर्चा में बंधुत्व का परिचय कराया था।

अगला चरण जनवरी, 1947 में, यानि स्वतंत्रता के सात माह पूर्व आता है। संविधान सभा ने नवम्बर 1946 में उद्देश्य संकल्प को लेकर चर्चा शुरू की थी, जिसे जनवरी में पारित करते हुए घोषणा की। इस घोषणा के शब्द संविधान की प्रस्तावना की झलक देते हैं, परंतु इसमें ”बंधुत्व” को शामिल नहीं किया गया था।

स्वतंत्रता के दो सप्ताह पश्चात् संविधान सभा ने एक मसौदा समिति बनाई थी, जिसमें आंबेडकर को अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इस समिति ने फरवरी, 1948 की बैठक में पहली बार ‘बंधुत्व’ को जोड़ने का प्रावधान रखा था। यह तिथि महात्मा गांधी की हत्या के एक सप्ताह बाद की है, और शायद उनकी हत्या के चलते ही सामाजिक सद्भाव के इस शब्द को जोड़ा जाना जरूरी समझा गया था।

इस घटना के लगभग दो वर्ष बाद ही आंबेडकर ने नवम्बर, 1949 के अपने प्रसिद्ध भाषण में ‘बंधुत्व’ शब्द को महत्वपूर्ण बना दिया।

ऐसा लगता है कि आज के समावेशी युग में ‘बंधुत्व’ का बहुत महत्व है। यह मानव को मानव से जोड़ने का साधन है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित राजमोहन गांधी के लेख पर आधारित। 22 अक्टूबर, 2020