
रुपए का अवमूल्यन बुरा नहीं है
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हाल ही में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट आई है। इसके मायने और प्रभाव से जुड़े कुछ बिंदु –
- इस अवमूल्यन से आयतित मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। डॉलर में लिए गए कर्ज को चुकाने की लागत बढ़ सकती है।
- सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि कमजोर मुद्रा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सामान को सस्ता बनाती है। इससे निर्यात बढ़ता है।
- वैश्विक बाजार में, रुपये का आकलन अन्य मुद्राओं से अलग करके नहीं किया जा सकता है। रुपये की रणनीति के लिए प्रमुख बेंचमार्क रेनमिनबी (चीनी मुद्रा) है। अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखने के लिए, भारत को चीनी मुद्रा के साथ तालमेल बनाए रखना चाहिए। घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए यह जरूरी है।
- फिलहाल में हुआ रुपये का अवमूल्यन, पूंजी आउटफ्लो और तेल आयातकों की बढ़ती डॉलर की मांग के कारण है। अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकारी आदेशों की हलचल के शांत होते ही वैश्विक मुद्रा बाजार और रुपया दोनों शांत हो जाएंगे।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 18 फरवरी, 2025