रॉकेट रैपिड लॉन्च कार्यक्रम में भारत की बढ़ती क्षमता

Afeias
21 Dec 2022
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तीन वर्ष पहले अगर आप किसी से कहते कि एक प्राइवेट कंपनी इसरो से रॉकेट लॉन्च करती है, तो यह अविश्वसनीय होता। परंतु यह हमारे वर्तमान का सच है। स्काईरूट एयरोस्पेस एक ऐसा स्टार्टअप है, जिसने हाल ही में सतीश धवन स्पेस सेंटर से विक्रम-एस रॉकेट का टेस्ट प्रक्षेपण किया है। इसी कड़ी में आगे अग्निकुल कॉसमॉस कंपनी भी अपना रॉकेट प्रक्षेपित करना चाहती है। भारत के लिए यह मील का पत्थर साबित होने वाला क्षण है।

भारत की बढ़ती प्रक्षेपण क्षमता पर कुछ बिंदु –

  • फिलहाल इसरो दस से कम संख्या में रॉकेट प्रतिवर्ष लॉन्च करता है। भारत को प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने के लिए इस संख्या को दस से ऊपर ले जाना होगा। इसके लिए व्यावसायिक और सरकारी दोनों स्तरों पर काम करना होगा।
  • छोटे रॉकेट के लाभ सर्वविदित हैं। वे 500 कि.ग्रा. से कम पेलोड को उनकी कक्षाओं में ठीक से स्थापित कर पाते हैं।
  • समय के साथ छोटे लॉन्च यंत्रों का विनिर्माण बढ़ाया जा सकता है। इन्हें जल्दी से लॉन्च भी किया जा सकता है।
  • अगर भारत का निजी क्षेत्र लगातार अच्छी प्रक्षेपण सेवाएं प्रदान करने में सफल होता है, तो भारत के अंतरिक्ष केंद्र थोड़े समय पहले दी गई सूचना पर भी पेलोड ले जाने की क्षमता प्राप्त कर सकते हैं।

रैपिड लॉन्च क्षमताओं का लाभ –

एक दशक पहले रॉकेट के विनिर्माण की उच्च लागत के कारण तेज और सामरिक अंतरिक्ष प्रक्षेपण क्षमताओं को हासिल करना बेहद मुश्किल माना जाता था। अब यह संभव हो चुका है। इसका श्रेय 3डी प्रिंटिंग, कार्बन फाइबर बॉडी के विनिर्माण और मिनिएचर उपग्रह को जाता है।

रैपिड लॉन्च का सबसे अधिक लाभ सेना में है। दुश्मन के घातक हमलों के दौरान अगर दूरसंचार जैसी सेवाओं को नष्ट किया जाता हैए तो क्षतिग्रस्त या नष्ट उपग्रहों की भरपाई के लिए रैपिड लॉन्च सेवा बहुत उपयोगी हो सकती है।

चुनौतियां कम नही हैं –

  • वर्तमान में इसरो का एसएसएलवी एकमात्र छोटा प्रक्षेपण यान है, जो कक्षा में 500 कि.ग्रा. पेलोड पहुंचाने में सक्षम हैं। परंतु इस साल की शुरूआत में इसका तकनीकी प्रदर्शन मिशन विफल हो गया। यह रॉकेट तीन स्तरीय है, जो ठोस रॉकेट मोटर शक्ति से चलता है। इन रॉकेट की अपनी सीमाएं हैं।

अतः भारत में निजी लॉन्च प्रदाताओं की सफलता तरल ईंधन वाले रॉकेटों के विनिर्माण में है। नवाचार पर आधारित ऐसी तकनीकों का विकास होना चाहिए, जो मांग के अनुसार विनिर्माण कर सकें।

दीर्घावधि योजना –

द इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एण्ड ऑर्थोराइजेशन सेंटर (आईएन-एसपीएसीई) की 2020 में स्थापना की गई थी। यह एक स्वतंत्र निकाय है, जो देश में सभी अंतरिक्ष गतिविधियों का नियमन करता है। इसका मुख्य काम अंतरिक्ष प्रक्षेपण में निजी क्षेत्र को अधिकृत करना है।

रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी को इस सेंटर के साथ मिलकर काम करना होगा, जिससे रक्षा क्षेत्र पेलोड के लिए अलग ट्रैक बनाया जा सके।

भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र पिछले तीन वर्षों में एक लंबा सफर तय कर चुका है। लेकिन भारत को एक संपन्न अंतरिक्ष शक्ति बनाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी और क्षमता का इस्तेमाल जरूरी है। इस दिशा में भारत की वर्तमान नीति सार्थक कही जा सकती है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित प्रणव आर सत्यनाथ के लेख पर आधारित। 19 नवंबर, 2022