कॉलेजियम प्रणाली से उपजी समस्याएं

Afeias
20 Dec 2022
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न्यायपालिका में उच्च स्तरीय नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम प्रणाली की स्थापना की गई थी। लेकिन हाल ही में कानून मंत्री रिजीजू ने उच्च एवं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रणाली को हमारे संविधान के लिए ‘विदेशी’ कहकर उसकी महत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

कॉलेजियम प्रणाली की निंदा काफी समय से यह कहकर की जा रही है कि यह अपारदर्शी है। इसमें भाई-भतीजावाद का बोलबाला है। अपने परिचित वकीलों के नाम न्यायाधीश के लिए आगे बढ़ाने का आरोप पहले भी लगाया जाता रहा है। इस फेर में न्यायिक जगत की प्रतिभाएं पीछे छूटती जाती हैं।

इस संबंध में एनजेएसी (नेशनल ज्यूडिशियल अपांइटमेन्ट कमीशन एक्ट) को रद्द करने वाले फैसले में भी कॉलेजियम प्रणाली की खामियों को स्वीकार किया गया था। लेकिन अंततः इसमें सुधार करके इसे ही चलाने का फैसला लिया गया। सुधार की कवायद भी जल्द ही छोड़ दी गई।

वर्तमान में सरकार ने कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित न्यायाधीशों के नाम पर चुप्पी साध ली है। अगर सरकार वाकई कुछ परिर्वतन करना चाहती है, तो नियुक्तियों को रोककर रखना कोई समाधान नहीं है। इस हेतु एक वैकल्पिक तंत्र को सामने लाना होगा; कोई ऐसा तंत्र, जिसमें पहले के कानून जैसी दुर्बलताएं न हो। एनजेएसी ने न्यायिक सदस्यों की संख्या को कम करके कार्यकारी नामांकित व्यक्तियों की संख्या को बढ़ा दिया था। इस प्रकार का तंत्र लाना चाहिए, जो न्यायिक नियुक्तियों में निष्पक्षता को प्रधानता पर रख सके।

इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय में अपील भी की गई है, जो संविधान संशोधन और एनजेएसी कानून को रद्द करने के फैसले पर पुनर्विचार करने की प्रार्थना करती है। उम्मीद की जा सकती है सरकार इसके समाधान के लिए त्वरित कदम उठाएगी।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 नवंबर, 2022

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