रणनीतिक विनिवेश नीति

Afeias
12 Mar 2021
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Date:12-03-21

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स्वतंत्रता के बाद से ही हमारी अर्थव्यवस्था समाजवाद पर आधारित रही थी। सन् 1991 की नई औद्योगिक नीति ने अर्थव्यवस्था की दिशा को बदला। 2021 के बजट में घोषित रणनीतिक विनिवेश नीति या स्ट्रैटेजिक डिस्इंवेस्टमेंट पॉलिसी ( एस डी पी ) से केंद्रीय सार्वजनिक उद्यमों में 50 फीसदी या अधिक की हिस्सेदारी और प्रबंधन का नियंत्रण निजी प्राधिकरण या संस्था को दिया जा सकता है। इस प्रावधान को लेकर प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं है।

सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण की शुरूआत अटल बिहारी वाजपेयी ने कर दी थी। फिर भी वे इन उपक्रमों की बढ़ती संख्या को नियंत्रित नहीं कर पाए थे। अतः इनकी संख्या बढ़ती चली गई, और 2019 में इसमें किया गया निवेश बढ़कर 16.4 खरब रु. तक पहुँच गया था।

वर्तमान नीति से जुड़े कुछ तथ्य –

  • सरकार ने पहली बार दो राष्ट्रीकृत बैंकों और एक बीमा कंपनी को निजीकरण की सूची में डालकर, इंदिरा गांधी के दौर की राष्ट्रीयकरण की नीति को उलट दिया है।
  • इतना ही नहीं, सरकार ने चार श्रेणियों के सार्वजनिक उपक्रमों के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों के ऐसे उपक्रमों के निजीकरण की मंशा जाहिर की है। ये चार श्रेणियां निम्न हैं –

1 ) परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा

2) परिवहन और दूरसंचार

3) पावर, पेट्रोलियम, कोयला एवं खनिज।, तथा

4) बैंकिंग, बीमा एवं वित्तीय सेवाएं।

  • पिछले सात दशकों में कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या सबसे ज्यादा बढ़ी है। रणनीतिक विनिवेश की प्रक्रिया में सरकार कृषि क्षेत्र से सबसे पहले मुक्ति पाना चाहती है।

विनिर्माण में स्टील, रसायन और फार्मा तथा इंजीनयरिंग सामग्री आदि का निजीकरण किए जाने का विचार है। सरकार का मानना है कि इन क्षेत्रों के विनिर्माण से किसी सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती है।

सेवा क्षेत्र में मार्केटिंग, कंसल्टेंसिंग सेवाएं, होटल व पर्यटन का निजीकरण किया जाना है।

  • इन क्षेत्रों में सरकार करदाताओं का धन नहीं लगाएगी। इन क्षेत्रों की इकाइयों को अपने पुनर्गठन आदि हेतु व्यावसायिक स्तर पर पूंजी जुटानी होगी।
  • सार्वजनिक उपक्रमों की अतिरिक्त भूमि को अब नीलामी के माध्यम से आवास या अन्य उत्पादक उपयोग के लिए बेचा जा सकेगा।

2021 की विनिवेश नीति एक जटिल दीर्घकालीन योजना है। विनिवेश की प्रक्रिया की स्वीकृति केबिनेट ने यदपि 2016 में ही दे दी थी,परंतु इससे संबंद्ध डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एण्ड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट 60%  से कम की सार्वजनिक पूंजी वाले उपक्रमों का ही निजीकरण नहीं कर पाया है।

एस डी पी 2021 जैसी महती योजना के संपादन के लिए एक अलग निजीकरण मंत्रालय बनाया जाना चाहिए, ताकि योजना के कार्यों को त्वरित गति से आगे बढ़ाया जा सके।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अरविंद पनगढ़िया के लेख पर आधारित। 22 फरवरी, 2021