संसदीय लोकतंत्र की गरिमा का पतन

Afeias
15 Mar 2021
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Date:15-03-21

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पुदुचेरी के मुख्यमंत्री ने हाल ही में इस्तीफा दे दिया है। इसके साथ ही वहाँ एक महीने से चली आ रही राजनैतिक अस्थिरता समाप्त हो गई है। मुख्यमंत्री नारायणसामी सदन में बहुमत साबित करने में विफल रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम में उनकी सरकार का पतन कुछ दिनों पहले से ही निश्चित दिखाई दे रहा था। परंतु जिस तरह से राजनीतिक घटनाक्रम चलाए उसने विधायकों के दलबदल को हतोत्साहित करने के लिए संवैधानिक प्रावधानों की सीमा को उजागर किया है।

कुछ समय पहले तक नारायणसामी के पास एक आरामदायक बहुमत था। लेकिन पिछले एक महीने में छः विधायकों ने सदन छोड़ दिया। इनमें से दो भाजपा में शामिल हो गए हैं। इस केंद्र शासित प्रदेश में चुनावों के कुछ हफ्तों पहले ही उपराज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा कर दी।

संसदीय लोकतंत्र की प्रकृति केवल कानून के शासन तक ही सीमित नहीं रहती है, बल्कि यह इस माध्यम से स्वस्थ उदाहरणों के निर्माण और सम्मान को स्थापित करती है। इस आदर्श की धज्जियां उड़ा दी गईं।

केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी में भाजपा की प्रमुख प्रतिद्वंदी कांग्रेस ही आगे रही है। लेकिन भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत के अपने लक्ष्य को साकार करने की बड़ी योजना के तहत नारायणसामी शासन पर लगातार हमला किया और उसका पतन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

अगर भाजपा ने इस समस्त घटनाक्रम को सकारात्मक रूप से अंजाम दिया होता, तो प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहे शब्दों की लाज रखी जा सकती थी। मई, 2019 में उन्होंने कहा था कि, “कानून और नियमों के अलावा, लोकतंत्र हमारे संस्कार में अंतर्निहित है, लोकतंत्र हमारी संस्कृति है। लोकतंत्र हमारी विरासत है’’

चुनावों के इतने करीब, दलबदल जैसे-खेल में फंसकर भाजपा जैसी पार्टी ने प्राप्ति से ज्यादा गंवाया ही होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि लोकतंत्र के आदर्श और मर्यादा की गरिमा को नष्ट करके, एक गलत उदाहरण को स्थापित किया गया है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित।

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