
रक्षा मोर्चे पर आत्मनिर्भरता का उद्घोष
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आधुनिक रणभूमि के समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। आज युद्ध सैनिकों की संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि नवाचार के आधार पर जीती जाती है। नवाचार भी स्वदेशी तकनीकि आधारित होनी चाहिए। दुश्मन आपके हथियारों की उपयोग-क्षमता से भयाक्रांत होना चाहिए।
किसी भी देश की संप्रभुता के लिए आवश्यक रक्षा सामग्री के निर्माण तथा रखरखाव का समयानुकूल उन्नयन बहुत आवश्यक है। भारत इन पहलुओं को समझता है। इसीलिए ‘आपरेशन सिंदूर’ की सफलता इसका उद्घोष कहीं जा सकती है। पाकिस्तान पर की गई सैन्य कार्रवाही सटीकता, संयम और जबरदस्त तकनीकी प्रभुत्व से ओत-प्रोत रही है।
आज संपूर्ण विश्व हमारी स्वदेशी तकनीकों का लोहा मान रहा है। आइए जानते हैं कुछ स्वदेशी तकनीकों के बारे में –
सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम आकाश –
यह डीआरडीओ द्वारा बनाई गई तकनीक हैं जो एक साथ कई निशानें साध सकती है। इसका उपयोग पाकिस्तान द्वारा 30-40 सीमा पर ड्रोन से अटैक के समय किया गया।
आकाशतीर –
यह ऐसी स्वदेशी तकनीक है, जो युद्ध के परिणाम बदल सकती है। इसने प्रत्येक पाकिस्तानी प्रोजेक्टाइल को नष्ट कर दिया। पाकिस्तान के चीन निर्मित एचक्यू – 9 और एचक्यू – 16 सिस्टम इसके सामने पूरी तरह विफल सिद्ध हुए।
कामिकाजे ड्रोन –
ये लक्ष्य की निशानदेही के साथ उसके आस-पास रहने में सक्षम हैं, जो मिसाइल हमलों का आधार तैयार करते हैं। बिना मानवहानि के घातक क्षमताओं वाली सामग्री तैयार कर सकते हैं।
इसरो की उपग्रह प्रणालियां –
कम-से-कम 10 उपग्रहों ने दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखी हुई थी। उन्होंने लक्ष्यों को चिह्नित करने में समन्वय के साथ ही निर्बाध संचार व्यवस्था को सुनिश्चित किया।
हमारे रक्षा उत्पादन से जुडी अन्य महत्वपूर्ण योजना
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना से 11 अरब डालर के ड्रोन्स उत्पादित हुए है, जो सामरिक तैयारी की अहम् कड़ी बनकर उभरे हैं।
- लड़ाकु विमान ‘तेजस’ से लेकर ‘धनुष’ आर्टिलरी और ‘अर्जुन’ टैंक से लेकर स्वदेश निर्मित पनडुब्बियों तक 65% रक्षा उपकरणों का निर्माण घरेलू स्तर पर हो रहा है। 2014 में हमारा रक्षा उत्पादन 24000 करोड़ रुपये था, जो 2024 में 1.27 लाख करोड़ हो गया है, इसे अब 2029 तक 3 लाख करोड़ तक ले जाने का लक्ष्य है। इसमें 50000 करोड़ रुपये के निर्यात का लक्ष्य है।
रक्षा उत्पादन को गति प्रदान करने के लिए उत्तर प्रदेश और तमिलनाडू में डिफेंस कारिडोर बनाए गए हैं।
स्टार्टअप में आईडीईएक्स (इंटरनेशनल डिफेंस एक्जीबिशन एण्ड कांफ्रेस) की सफलता तथा सृजन से सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहन मिला है। अब इसमें निजी क्षेत्र का योगदान 21% से अधिक हो गया है।
आज जब देश नए गुट बना रहे हैं, और निर्भरता हथियार बन रही है, हम अपने नवाचार को ‘आपरेशन सिंदूर’ द्वारा संपूर्ण विश्व के समक्ष दिखाकर आत्मनिर्भरता का उद्घोष कर रहे हैं।