राज्यपालों की शक्तियों के संबंध में ऐतिहासिक निर्णय

Afeias
20 Jun 2025
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  • पिछले कुछ वर्षों में राज्यपालों के मनमाने और अलोकतांत्रिक व्यवहार पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने रोक लगा दी है।
  • 8 अप्रैल, 2025 को न्यायालय ने राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने में राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर संवैधानिक स्थिति को स्पष्ट कर दिया है।
  • राज्यपालों के मनमानी अवधी तक विधेयकों को स्वीकृति के लिए रोके रखने को ‘अवैध’ और ‘गलत’ बताया है।
  • राज्यपालों की शक्ति एक अत्यंत विवादास्पद प्रश्न रहा है। एक विधेयक पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए संविधान में कोई निर्धारित समयसीमा नहीं दी गई है। न्यायालय ने पूर्व के कई निर्णयों, भारतीय संघवाद के काम काज की जांच करने वाली समितियों की रिपोर्ट और संविधान सभा की बहसों को ध्यान में रखते हुए यह ठोस निष्कर्ष निकाला कि राज्यपालों या राष्ट्रपति के पास निर्वाचित विधानसभा द्वारा बनाए गए कानून को अनिश्चित काल के लिए लागू होने से रोकने की मनमानी शक्ति नहीं है।

केंद्र की प्रतिक्रिया –

  • केंद्र चाहता तो इस निर्णय के अनुरूप संवैधानिक संशोधन कर सकता था।
  • इसके बजाय केंद्र ने राष्ट्रपति के संदर्भ के माध्यम से इन सवालों को फिर से न्यायालय में उठाया है, और अनुच्छेद 143 के अंतर्गत उसकी राय मांगी है।
  • ज्ञातव्य हो कि न्यायालय की कोई भी राय न्यायालय के निर्णय को रद्द नहीं करती है।
  • केंद्र ने राष्ट्रपति के संदर्भ पर राय का असामान्य मार्ग चुनकर राज्यपालों के माध्यम से अपनी शक्तियों की मांग का संकेत दिया है; ऐसी शक्तियां, जो संविधान निर्माताओं ने उसे नहीं दी हैं।

फिलहाल, केंद्र सरकार को यह निर्णय स्वीकार करना चाहिए, और यदि आवश्यक हो, तो अन्य शेष मुद्दों को हल करने के लिए मुख्यमंत्रियों और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलानी चाहिए।

द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 17 मई, 2025