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राज्यपालों की कार्यप्रणाली पर पुनर्विचार की आवश्यकता
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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का इसपर कहना है कि जब विधानसभा अपने अधिकार का उपयोग करते हुए कोई कानून बनाती है, तो राज्यपाल को इसका सम्मान करना चाहिए और अपनी स्वीकृति देनी चाहिए। ऐसा न करने पर यही समझा जाता है कि वे वस्तुतः राज्य के लोगों की इच्छा को खारिज कर रहे हैं।
राज्यपाल की भूमिका को लेकर राज्यसभा में मांग
हाल ही में तमिलनाडु के इस मुद्दे को द्रमुक सांसद पी. विल्सन ने यह कहते हुए उठाया है कि राज्यपालों के लिए विधेयकों पर कार्रवाई के लिए समय-सीमा तय करने हेतु संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए। संवैधानिक कार्यों की पूर्ति में की जाने वाली अनुचित देरी पूर्णतया असंवैधानिक है।
तमिलनाडु विधानसभा में न केवल राज्यपाल के इस कार्य को, बल्कि राष्ट्रपति द्वारा विधायी कार्यों में सहमति न देने या स्वीकृति में किए गए बहुत अधिक विलंब पर भी सवाल उठाया है। 2017 में, राष्ट्रपति ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित दो नीट छूट विधेयकों पर सहमति रोक दी थी, जिसके कारण अज्ञात हैं।
राज्यपालों और राष्ट्रपतियों के विधायी कार्यों पर कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए की गई इस मांग को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित डी. सुरेश कुमार के लेख पर आधारित। 18 जनवरी, 2022