राजदंड की शक्ति के सही मायने
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1947 में जवाहरलाल नेहरू को भेट किया गया तमिलनाडु का सेंगोल या राजदंड फिलहाल काफी चर्चा में रहा है। वास्तव में यह इस बात का प्रतीक बन गया है कि कैसे भारत ने न केवल आर्थिक बल्कि अन्य क्षेत्रों में पूर्व औपनिवेशिक शासक ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है।
वास्तव में राजदंड, अधिकार का एक प्राचीन प्रतीक है, और सदियों से विभिन्न सभ्यताओं में इस्तेमाल किया जाता रहा है। यह एक अंतर्निहित वादे का प्रतिनिधित्व करता है, और इस वादे की पूर्ति के बिना इसका कोई महत्व नहीं है।
भारत में लोकतांत्रिक सुशासन के वादे की पूर्ति के लिए संसद एक प्रकार का प्राथमिक वाहन है। संसदीय कामकाज की सुगमता और इसके परिणाम की गुणवत्ता भारत के भविष्य को प्रभावित करती है। इसमें केवल संसद सत्र ही नहीं, अपितु कई अंतरिम समितियों के कार्य भी मायने रखते हैं, क्योंकि ये नीति-निर्माण के लिए उपयोगी डेटा प्रदान करते है। दुर्भाग्यवश, इन क्षेत्रों में, भारत के संसदीय प्रदर्शन में कमी आई है।
भारत के सांसदों को ब्रिटेन की खोखली राजशाही के सबक से सीखना चाहिए। ये केवल धूमधाम और शानशौकत के साथ, घोटालों और दोहरे मापदंड़ों के लिए पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित करती है। संसद को ऐसे पतन से बचना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 मई, 2023