राज्यपालों के पद पर सेवानिवृत्त अधिकारियों की नियुक्ति कितनी सही ?

Afeias
07 Mar 2023
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हाल ही में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश और एक पूर्व भारतीय सेना कमांडर की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति की है। सरकार का यह कदम कुछ कारणों से उचित नहीं कहा जा सकता है। इसे कुछ बिंदुओं में समझते हैं –

1)    गवर्नर का पद, ब्रिटिश शासन की विरासत के रूप में बनाए रखा गया है। इस पद की लोकतंत्र में वैधता के प्रश्न पर संविधान सभा के सदस्यों में काफी बहसबाजी हुई थी। अंततः इसे गणतंत्र में शामिल कर लिया गया। इस शर्त पर कि राज्यपाल, केंद्र और राज्यों के बीच एक कड़ी के रूप में तो काम करेगा, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर उसका पद बहुत ही सजावटी होगा। राज्यपाल को जिन विशेष परिस्थितियों में विवेकाधीन शक्तियां प्रदान की गई हैं, संविधान में वे ठीक ढंग से परिभाषित नहीं हैं। यही कारण है कि राज्यपाल की भूमिका के हस्तक्षेप से लोकतंत्र के लिए गंभीर प्रश्न खड़े हो जाते हैं।

2)    हाल के कुछ वर्षों में झारखंड, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में राज्यपालों ने कार्यपालिका के राजनीतिक और विधायी कार्यों में दखलअंदाजी की कोशिश की है। यह विवादास्पद है।

3)    2014 से केंद्र में भाजपा का नेतृत्व चला आ रहा है। इस बीच सरकार ने सेनाए पुलिस खुफिया विभागों और न्यायालय से सेवानिवृत्त अनेक अधिकारियों की राज्यपाल के रूप में नियुक्ति की है। इससे तनाव उत्पन्न हो रहा है। ये सभी विभाग ऐसे हैं, जिनके पदाधिकारियों को अपनी वर्तमान भूमिकाओं में पक्षपात पूर्ण राजनीति से दूर रहने की आवश्यकता है। लेकिन सरकार ने इस प्रकार का ट्रेंड सेट कर दिया है कि महत्वपूर्ण विभागों के जिम्मेदार पदों पर आसीन लोगों की निष्ठा संदेह के घेरे में आ जाती है। सरकार को इस प्रकार के निर्णयों से बचना चाहिए। लोकतंत्र की पवित्रता में राज्यपाल के पद की गरिमा को बनाए रखने का प्रयास किया जाना चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 14 फरवरी, 2023