
राजनीतिक प्रतिनिधियों के काम के घंटों पर एक नजर
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वर्ष 2023 की पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की वार्षिक रिपोर्ट 2024 में जारी की गई थी। ‘द एनुअल रिव्यू ऑफ स्टेट लॉज‘ के नाम से जारी इस रिपार्ट में हमारे सांसदों और विधायकों के कार्य के घंटों के बारे में जानकारी दी गई है।
कुछ बिंदु –
- 2023 में राज्य विधानसभाएं कुल 23 दिनों के लिए मिलीं।
- लगभग 12 राज्यों की विधानसभाओं में 100 घंटों से भी कम काम किया गया।
- लगभग 44% विधेयक पेश किए जाने के दिन या उसके अगले ही दिन पारित कर दिए गए। उन पर बहस का पर्याप्त समय नहीं दिया गया।
- इसी कड़ी में अगर 2024 में संसद के कामकाज पर नजर डालें, तो भी कोई बेहतर प्रदर्शन नहीं मिलता है।
- शीतकालीन सत्र 43 घंटे 27 मिनट चला, और उत्पादकता 40.03% रही।
ज्ञातव्य हो कि 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिए गठित एक समिति ने सिफारिश की थी कि 70 से कम सदस्यों वाली विधानसभाओं को वर्ष में कम-से-कम 50 दिन, और अन्य सदनों को 90 दिन बैठक करनी चाहिए।
जब विधायी निकाय बैठकें नहीं कर पाते हैं, तो सत्र स्थगित हो जाते हैं। विधेयक जल्दबाजी में पारित हो जाते हैं, और जनता का प्रक्रिया पर विश्वास कम हो जाता है। इसे सुधारा जाना चाहिए।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 25 जनवरी 2025