पूर्वोत्तर में एक नया अध्याय
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हाल ही में असम और मेघालय ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता अंतरराज्यीय सीमा विवाद से जुड़े 12 मतभेदों में से छह के हल करता है। ज्ञातव्य हो कि असम के अपने अधिकांश पड़ोसी राज्यों के साथ ऐसे सीमा विवाद हैं, जो अविभाजित असम से अलग हुए थे। ये विवाद अक्सर गंभीर झड़पों में बदलते रहे हैं। इन विवादों को जारी रखना न तो राष्ट्रीय हित में है, और न ही क्षेत्रीय हित में।
इन विवादों को हल करना इतना मुश्किल क्यों है ?
- इस क्षेत्र की विविध जातीय आबादी, संवैधानिक रूप से परिभाषित सीमाओं के विपरीत अपनी पारंपरिक सीमाओं को मजबूती से पकड़े हुए है।
- पूर्वोत्तर में नगालैण्ड, मेघालय, मिजोरम और अरूणाचल प्रदेश को 1960 और 70 के दशक में असम से अलग किया गया था।
- असम-मेघालय सीमा पर रहने वाले लोगों के पास लंबे समय से दोनों राज्यों से संबंधित मतदाता पहचान पत्र हैं।
- असम-मिजोरम और असम-नागालैण्ड विवादों में असम के आरक्षित वन क्षेत्रों में अतिक्रमण के आरोप हैं, जिससे समाधान मुश्किल हो रहा है।
असम और मेघालय का सीमा विवाद अन्य राज्यों से भिन्न रहा है। पिछले साल दोनों राज्यों ने इस हेतु तीन-तीन समितियों का गठन किया था। स्थानीय लोगों से किसी एक राज्य को चुनने के लिए कहा गया था। भारतीय सर्वेक्षण विभाग अब समझौते के अनुसार सीमा का सीमांकन करेगा।
यह पूर्वोत्तर में अन्य सीमा विवादों को हल करने का एक खाका बन सकता है। इसके लिए ठोस प्रयास किए जाने चाहिए। यह न केवल पूर्वोत्तर को विकसित करने और भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को साकार करने में मदद करेगा, बल्कि चीन की प्रतिकूलता पर भी नियंत्रण कर सकेगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 31 मार्च, 2022