पट्टनम का ऐतिहासिक महत्व
Date:27-11-20 To Download Click Here.
हाल ही में कोच्चि के निकट के एक गांव पट्टनम में पुरातात्विक खुदाई के दौरान कुछ ऐसे प्रमाण मिले है, जो केवल इस क्षेत्र के ही नहीं, बल्कि संपूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास को नए नजरिए से देखने के लिए हमें बाध्य करते हैं। यूनानी और तमिल संघ की किताबों में इस क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण बंदरगाह होने के प्रमाण पहले ही मिलते रहे हैं। इस महानगरीय सभ्यता के तटीय नगर को मुजिरिस के नाम से भी जाना जाता रहा है।
2001 में इस क्षेत्र का दौरा करने वाले एक ब्रिटिश संग्रहालय-विज्ञान विशेषज्ञ ने इसके इटली से संपर्क के बारे में कहा था। 2004 से प्रारंभ हुई खुदाई में भी अनेक अवशेष प्राप्त हुए थे, जो इसके पर्शिया, मध्यपूर्वी क्षेत्र, उत्तरी अफ्रीका और भूमध्य क्षेत्र से संपर्क होने का प्रमाण देते रहे हैं।
पट्टनम का विशेष महत्व क्यों ?
- इस गांव में भारी मात्रा में मिले मनको, अस्थियों, सोने-चाँदी, लोहा, तांबा आदि धातुओं से मिले पात्रों के टुकडे और गहनों आदि से इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा रहा है कि संभवतः अभी तक अज्ञात मुजिरिस नगर यहीं रहा होगा |
- मानव अस्थियों के विभिन्न नमूनों के डीएनए परीक्षण से पता चलता है कि यहाँ दक्षिण एशियाई, पश्चिमी एशियाई और भूमध्य क्षेत्रीय लोगों का आना-जाना था।
- क्षेत्र से जिब्राल्टर कैटालोनिया से लेकर दक्षिणी चीन तक की कलाकृतियां मिली हैं, जो चीन के हेपू और जॉर्डन के खोर रोरी की है। एक ही स्थान पर विविध क्षेत्रों की इतनी सामग्री का पाया जाना, इसके बंदरगाह होने का प्रमाण माना जा सकता है।
- यहाँ पर एक घाट होने का भी प्रमाण मिला है।
- इन खोजों से पता चलता है कि मुजिरिस के अस्तित्व के दौरान, तमिल साहित्य में वर्णित थमिजहघम के विशाल क्षेत्र में केरल भी शामिल था। इस संपूर्ण क्षेत्र के लोग मुक्त विचार रखने वाले विवेकशील लोग थे। इनके धर्म और युद्धों के प्रति कोई विशेष झुकाव नहीं था। ये लोग तकनीक, विदेशी व्यापार और संपर्क में विश्वास रखते थे।
- पट्टनम की नगरीय सभ्यता के अत्यंत व्यवस्थित होने के प्रमाण मिलते हैं।
0-400 ईसवीं में अस्तित्व रखने वाली इस सभ्यता का महत्व न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय है, क्योंकि यहाँ तीस विभिन्न संस्कृतियों के प्रमाण मिलते हैं। सवाल अब इस बात का है कि क्या मुजिरिस का क्षेत्रफल 70 हेक्टेयर के टीले तक ही सीमित है या इससे अधिक विस्तृत है। निस्संदेह यह एक बड़े क्षेत्र में फैला हो सकता है। दूसरे, क्या तकनीक के प्रयोग से खुदाई कार्य में तेजी लाई जा सकती है ?
इस गांव में पेड़-पौधों और बस्ती के होने से तकनीक का बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि इस नगरीय सभ्यता और बंदरगाह के विलुप्त होने के बारे में अभी तक कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी है। अभी इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय पट्टनम के टीलों में दबा पड़ा है, जिसकी परतों को खोलने में पीढियां निकल जाएंगी।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित पी.जे. चेरियन द्वारा दिए गए साक्षात्कार पर आधारित। 16 नवम्बर, 2020