पाठ्यक्रमों को आकर्षक व आलोचनात्मक बनाने के लिए अपडेट किया जाए
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स्कूल या कॉलेज का पाठ्यक्रम प्रचार के लिए नहीं होता है। हाल ही में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) की पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर की गई टिप्पणी कुछ उल्टा संकेत देती है।
- दरअसल, भारत की योजना ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनने की है। अतः 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस और 2002 के गुजरात दंगों को पाठ्यक्रम में गायब कर देने का सत्तावादी दल का एकतरफा प्रचार का निर्णय ठीक नहीं लगता है।
- इस तरह की नीतियां सामूहिक विचारधारा के साथ ठीक नहीं बैठती हैं।
- यह युवाओं को ‘अप्रियता’ के नाम पर भटकाने वाली बात लगती है।
- इससे तो हम विद्यार्थियों में आलोचनात्मक सोच और अलग-अलग विचारों को प्रोत्साहित कैसे कर सकेंगे।
- युवाओं को जीवन और समाज के कठिन सोपानों से जुड़ने और सामना करने के लिए तैयार करने के बजाय, हम उन्हें ‘माओ की छोटी लाल किताब’ थमा रहे हैं। यह उनकी घारणा को विकृत करेगी।
- कुल मिलाकर, दुनिया भर में पाठ्यक्रमों को इसलिए अपडेट किया जाता है, जिससे सही निष्कर्षों को शामिल किया जा सके। गलतियों को हटाया जा सके। पाठ्यक्रम को अधिक आकर्षक बनाया जा सके।
डिजिटल युग में अप्रिय तथ्यों को छिपाने से युवाओं को सही शिक्षा नहीं मिल सकती है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 18 जून, 2024
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