
पंचायती व्यवस्था पर रिपोर्ट
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पंचायती राज मंत्रालय और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने हाल में जारी अपनी एक रिपोर्ट में राज्य स्तरीय अंतरण सूचकांक (Devolution Index) की चर्चा की है।
सूचकांक के समीक्षात्मक विषय –
- पंचायती राज संस्थानों को निर्देशित करने वाले संस्थागत ढाँचे
- पंचायतों के कामकाज
- उनकी वित्तीय व्यवस्था
- उपलब्ध अधिकारी
- स्थानीय स्तर पर पंचायतों द्वारा क्षमता निर्माण तथा
- पंचायतों की जवाबदेही।
सूचकांक में राज्यों की स्थिति –
- सभी संकेतकों के आधार पर देश के दक्षिणी राज्य, विशेषकर कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु अन्य राज्यों से काफी आगे हैं।
- कर्नाटक 72.23 डी आई वैल्यू के साथ शीर्ष स्थान पर है।
- पिछले एक दशक में उत्तर प्रदेश और बिहार में काफी हद तक सुधार हुआ है।
- मणिपुर, अरूणाचल प्रदेश, झारखंड और पंजाब में विकेंद्रीकरण की दृष्टि से स्थिति खराब है।
ग्राम पंचायतों की चुनौतियां –
अपर्याप्त वित्त – ग्राम पंचायतें स्वयं राजस्व अर्जित करने में दयनीय स्थिति में है। वित्तीय बाधाओं के कारण पंचायती राज्य संस्थान अपनी पूर्ण क्षमता के साथ कामकाज नहीं कर पा रहे, क्योंकि वे वित्तीय मदद के लिए केंद्र व राज्य पर निर्भर हैं।
राज्य वित्त आयोग का गठन न होना – अब तक केवल 10 राज्यों ने छठे राज्य वित्त आयोग का गठन किया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने एक अध्ययन में भारत में वित्तीय अधिकारों के अत्यधिक केंद्रीकरण का उल्लेख किया था और इसमें राज्य सरकारों को भी जिम्मेदार ठहराया था। इसमें यह भी कहा गया था कि पंचायती राज्य संस्थाओं का राजस्व व्यय सभी राज्यों के सफल घरेलू उत्पाद का 0.6% से भी कम है।
मानव संसाधन – ग्राम पंचायतों में सहायक कर्मचारियों की अत्यंत कमी की भी चर्चा की गई है।
कमजोर बुनियादी ढांचा – कुछ पूर्वोत्तर एवं पहाड़ी राज्य अपर्याप्त भौतिक एवं डिजिटल ढांचे की कमी से जूझ रहे हैं।
महिलाओं के लिए आरक्षण – कुछ राज्य महिलाओं के लिए निर्धारित कोटा मानक का पालन नहीं कर रहे हैं। इसके विपरीत झारखंड, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें निर्धारित कोटा से अधिक है।
सुझाव –
- हमें स्कैंडिनेवियाई देशों के सरकार तथा लोक वित्त के विकंद्रीकरण के परिणामों से सीखकर वित्तीय संसाधन जुटाने तथा प्रशासनिक क्षमता विकसित करने का प्रयास करना चाहिए।
- सभी प्रकार की आवासीय एवं अन्य संपत्ति पर कर वसूलने का अधिकार ग्राम पंचायतों को देना चाहिए।
- सहायक कर्मचारियों की नियमित भर्ती एवं प्रशिक्षण होना चाहिए।
- जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए “स्थानीय सरकार लोकपाल” की स्थापना करनी चाहिए।
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