पहाड़ों की पारिस्थितिकीय को बचाएं
To Download Click Here.
उत्तराखंड क्षेत्र में पर्यावरणीय असंतुलन से होने वाले हादसे अंतहीन हो चले हैं। 2013 की उत्तराखंड बाढए हिमस्खलन से हुई चमोली आपदा के बाद अब इस क्षेत्र के जोशीमठ नगर के घरों में दरारें आनी शुरू हो गई हैं। इस क्षेत्र में होने वाले प्राकृतिक विघटन को निम्न बिंदुओं में समझा जा सकता है –
- 1976 से 2022 तक पूरे क्षेत्र में भारी निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने की चेतावनी कई सरकारी समितियों ने दी है। लेकिन सबको अनसुना कर दिया गया है।
- गढ़वाल मंडल भारत के सबसे कमजोर क्षेत्रों में से एक है। हाल के दशकों में होने वाले निर्माण विध्वंसकारी सिद्ध हो रहे हैं। बहुमंजिला इमारतें, थर्मल पावर प्रोजेक्ट सुरंग, सड़क निर्माण आदि के लिए पहाड़ियों को लगातार नष्ट किया जा रहा है।
- भविष्यवाणी की जा चुकी है कि अगली हिमालयी बाढ़ कहर बरपा सकती है। परंतु राज्य और केंद्र सरकारों ने संकेत दिया है कि राजमार्ग और बिजली परियोजनाओं का काम जारी रखा जाएगा।
इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, इन परियोजनओं की विकास-रणनीति को बदला जाना चाहिए। मणिपुर की सरकार ने इंफाल-जिरिबाम रेल लिंक के निर्माण के दौरान होने वाले भूस्खलन के बाद योजना पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है। इसी तर्ज पर उत्तराखंड सरकार को भी विचार करना चाहिए।
सख्त पर्यावरण अनुकूल उपाय, आर्थिक विकास और रोजगार के अवसरों की उपलब्धता को धीमा कर सकते हैं। लेकिन एक विशाल पारिस्थितिक आपदा के खतरे को टालकर जान-माल की हानि को बचा सकते हैं। पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों के प्रशासकों के लिए यह सोच का महत्वपूर्ण विषय है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 जनवरी 2023