नोटबंदी पर उच्चतम न्यायालय की हालिया टिप्पणी

Afeias
24 Jan 2023
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नोटबंदी या विमुद्रीकरण पर उच्चतम न्यायालय ने अपना अंतिम निर्णय देकर मामले को विराम दे दिया है। 8 नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी को संविधान पीठ ने कार्यपालिका का निर्णय क्षेत्र बताया है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसे क्षेत्र विशुद्ध रूप से विशेषज्ञों के क्षेत्र हैं, और न्यायिक समीक्षा से परे हैं। न्यायपालिका के इस निर्णय को नोटबंदी के निर्णय से परे भी एक बेंचमार्क माना जा रहा है। ज्ञातव्य हो कि सर्वोच्च न्यायपालिका में जनहित याचिकाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इससे उसका बहुत सा समय बर्बाद होता है। बहरहाल संविधान पीठ के एक सदस्य ने नोटबंदी को गैरकानूनी भी बताया है।

कुछ बिंदु –

  • उनका कहना है कि संविधान ने सरकार को विमुद्रीकरण का अधिकार तो दिया है, लेकिन इसे संसद में कानून बनाकर किया जाना चाहिए।
  • नोटबंदी को गैजेट के माध्यम से लागू करना गलत था। ऐसा तभी किया जा सकता है, जब आरबीआई अपने अनुच्छेद 26(2) के तहत ऐसा कोई प्रस्ताव रखे।
  • आरबीआई की गलती की आलोचना की गई, क्योंकि इसने अपना स्वतंत्र निर्णय न लेकर सरकार की इच्छा को सर्वोपरि रखा।

संविधान पीठ ने नोटबंदी के उद्देश्य की सफलता-असफलता पर कोई विश्लेषण नहीं किया है। अगर विमुद्रीकरण का सामान्य विश्लेषण करें, तो आर्थिक नीतियों के लिए इसे एक बड़ा झटका ही माना जा रहा है। जिस काले धन पर रोक के लिए इसे लाया गया था, उसमें भी कोई सफलता नहीं मिल पाई है। दूसरे, अगर डिजिटल पेमेंट को बढ़ाने का तर्क दिया जाए, तो इसे सफलता का कुछ श्रेय दिया जा सकता है। लेकिन इसको प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक झटके का यह रास्ता उचित नहीं कहा जा सकता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि 2018 और 2019 की आर्थिक मंदी जीएसटी और नोटबंदी का नतीजा थी। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने जैसा स्पष्ट कहा कि यह उसकी न्यायिक समीक्षा का विषय नहीं होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय का यह रवैया लंबे समय से पेंडिंग मामलों के लिए अच्छा सिद्ध हो सकता है। इसे बनाए रखा जाना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधरित। 3 जनवरी, 2023