नोटा से जुड़े कुछ तथ्य
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नकारात्मक वोट – उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक चुनाव सुधार फैसलों में से एक 2013 में आया था। पीयूसीएल बनाम भारत संघ संबंधी निर्णय में नोटा (नन ऑफ द अबव) को मान्यता दी गई। इस निर्णय का उद्देश्य दो क्षेत्रों में बदलाव लाने के लिए नोटा का इस्तेमाल करना था। (1) मतपत्र पर विकल्पों से नाखुश मतदाता अभी भी मतदान करने और संदेश भेजने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। (2) यह बदले में राजनीतिक दलों को उम्मीदवारों के चयन में सुधार करने के लिए प्रेरित कर सकता है। ज्ञातव्य हो कि 2019 के लोकसभा चुनावों में सूरत में नोटा तीसरे स्थान पर रहा था।
आधा-अधूरा सुधार – चुनाव आयोग ने नोटा को मतपत्र मे जोड़ तो दिया था, लेकिन यह नोटा की केवल प्रतीकात्मक उपस्थिति थी।
राज्यों ने रास्ता दिखाया – कुछ राज्य चुनाव आयोगों ने उच्चतम न्यायालय की 2013 की भावना को पहचानते हुए नोटा को एक ‘काल्पनिक उम्मीद्वार‘ माना। और अगर नोटा जीतता है, तो चुनाव फिर से कराने का नियम बनाया गया। महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के चुनाव आयोग ने 2018 से नोटा को महत्व देकर न्यायालय के निर्णय की पूरी रक्षा की है।
संकेत मायने रखते हैं – नोटा को राजनीतिक दलों ने अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया है। नोटा के कारण वोट बंट जाते हैं, जिसमे पहले और दूसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों के बीच वोटों का अंतर बढ़ जाता है।
नकारात्मक वोट हितधारकों के लिए एक शक्तिशाली शस्त्र है। इसके माध्यम से मतदाता उम्मीद्वारों के प्रति अपनी निराशा व्यक्त करने का प्रयास कर सकते हैं। यह बदलाव का आह्वान है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 24 अप्रैल, 2024