नोटा (नन ऑफ द अबव) प्रावधान और भारतीय मतदाता

Afeias
22 Mar 2017
A+ A-

Date:22-03-17

To Download Click Here

भारतीय चुनाव व्यवस्था में नोटा (NOTA) या नन ऑफ द अबव की शुरुआत हुए लगभग तीन वर्ष बीत चुके हैं। इस बीच में एक लोकसभा और विधानसभा चुनावों के चार दौर निकल चुके हैं। 2016 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में भी मतदाताओं ने इसका काफी प्रयोग किया था। नोटा, मतदान के दौरान मशीन पर दर्शाया गया एक ऐसा प्रावधान है, जिसके माध्यम से आप समस्त राजनैतिक दलों या निर्दलीय उम्मीद्वारों को अस्वीकृत कर सकते हैं। भारत में नोटा की शुरुआत सन् 2013 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में उच्चतम न्यायालय निर्णय के बाद हुई थी। इसके बाद भारत नकारात्मक मतदान करने वाला विश्व का 14वां देश बन गया। हांलाकि भारत में अभी भी किसी ख़ास उम्मीद्वार को अस्वीकृत करने का अधिकार मतदाताओं को नहीं दिया गया है। अभी भी नोटा से अलग जिस उम्मीद्वार को अधिकतम मत मिलते हैं, वही चुनाव जीतता है।

इस प्रावधान को मतदाता एक हथियार की तरह इस्तेमाल में ला रहे हैं। केरल में महिलाओं के एक समूह ने चुनाव में किसी महिला उम्मीद्वार के न होने पर नोटा के प्रयोग की बाकायदा अपील की थी। इसी प्रकार तमिलनाडु में भी एक युवा समूह ने भ्रष्टाचार के विरोध में नोटा का प्रयोग करने की अपील की थी। नोटा का प्रयोग करने की ऐसी सामूहिक अपीलों के बावजूद किसी भी चुनाव में इसका प्रतिशत 2.02 से ऊपर नहीं गया है। फिर भी अगर कुछ विधानसभाओं के चुनावों पर नज़र डाली जाए, तो 261 चुनाव क्षेत्रों में उम्मीदवार ने जिस अंतर से जीत हासिल की, नोटा के मत उससे ज़्यादा ही थे। इसका अर्थ यही हुआ कि इस प्रावधान के कारण किसी न किसी उम्मीदवार को नुकसान सहना पड़ा। यही नोटा की सार्थकता है।

  • नोटा की शुरुआत से लेकर अभी तक उसके प्रयोग के संबंध में कुछ रोचक तथ्य
    • आरक्षित चुनाव क्षेत्रों में नोटा का अधिक प्रयोग देखा गया है। इससे पता चलता है कि समाज में अभी भी अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षण देने पर पूर्वाग्रह और पक्षपात की भावना है।
    • वामपंथी अतिवादिता वाले विधानसभा क्षेत्रों में भी नोटा का प्रयोग अधिक देखा गया है। यह विरोध एक तरह से राज्य के राजनैतिक परिदृश्य के विरूद्ध लगता है।
    • नोटा का प्रयोग उन चुनाव क्षेत्रों में अधिक देखने को मिला, जहां काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में सीधी टक्कर थी। इसका अर्थ यही लगाया जा सकता है कि वहाँ के मतदाता इन दलों का कोई विकल्प चाहते थे।

इन सबका अर्थ यही निकलता है कि भारतीय मतदाता केवल उम्मीदवारों के विरूद्ध नोटा का प्रयोग नहीं करता, बल्कि वह देश के राजनैतिक तंत्र के प्रति विरोध जताने के लिए भी इसे हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है।नोटा के प्रयोग पर और अधिक सांख्यिकी एवं मानव विज्ञान दृष्टिकोण से समालोचना करने की आवश्यकता है। इसका उद्देश्य सही रूप में तभी सफल होगा, जब मतदाता को उम्मीदवार विशेष को अस्वीकृत करने का अधिकार मिल जाएगा। इससे संबंधित जनहित याचिका मद्रास उच्च न्यायालय में दी जा चुकी है। उम्मीद है कि आने वाले समय में भारतीय मतदाता और अधिक शक्तिवान बन सकेगा।

हिंदू में प्रकाशित वी. आर. वचना और माया रॉय के लेख पर आधारित।

Subscribe Our Newsletter