निकहत ज़रीन के विश्व चैंपियन होने के मायने
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भारत की एक लड़की; जो कभी अपने परिवार में पुरूषों की पारंपरिक सोच की अवहेलना करने का साहस नहीं करती थी, से लेकर एक दुर्लभ सहज प्रवृत्ति की महिला में परिवर्तित होने वाली निकहत ज़रीन, बॉक्सिंग के क्षेत्र की नई विश्व चैंपियन है।
25 वर्षीय इस मुस्लिम महिला की उपलब्धि उसी सोशल मीडिया पर उत्साह का कारण बनी हुई है, जहाँ कई मुस्लिम रोज ही बदनामी और घृणा का सामना करते हैं। इन अर्थों में निकहत की जीत, उसकी अकेले की जीत नहीं है, बल्कि उसके जैसे लाखों-करोड़ों लोगों की जीत है। जैसे-जैसे वह बढ़ेगी, वैसे-वैसे उसकी पहचान का दायित्व भी बढ़ता जाएगा।
उसकी जीत छोटे शहर की पितृसत्ता के खिलाफ एक प्रहार है। एक सिमटी, नकारात्मक और बदसूरत वास्तविकता का सामना कर रहे युवा मुसलमानों के लिए यह बहुत मायने रखती है।
1980 के दशक में हम भारतीयों के लिए मुस्लिम नायकों का होना स्वाभाविक हुआ करता था। कोई आपकी पसंद पर सवाल नहीं उठाता था। मोहम्मद शाहिद, अजहरूद्दीन, सैयद मोदी ऐसे बहुत से नाम हैं, जो लोगों की पसंद हुआ करते थे। आंकड़े साक्षी हैं कि इस दशक में हिंदू-मुस्लिम दंगे भी बहुत हुए हैं। लेकिन वे स्थानीय स्तर पर ही निपटा लिए जाते थे।
वर्तमान में एक छोटी सी सांप्रदायिक चिंगारी भी एक बड़ी राष्ट्रीय आग बन जाती है। इस समय भारत को एक लोकप्रिय मुस्लिम नायक की सख्त जरूरत है, जो रोल-मॉडल की तरह काम कर सके।
इस कठिन दौर में निकहत की सफलता हमें बता रही है कि हम यानी विभिन्न समुदाय, अपना स्थान कैसे बना सकते हैं। यह सचमुच प्रशंसायोग्य है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित सिद्धार्थ सक्सेना के लेख पर आधारित। 23 मई, 2022