नौकरियों का गंभीर संकट
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2023-24 की पहली तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि 8% से अधिक दर्ज की गई है। दूसरी ओर रोजगार का संकट नंबर एक आर्थिक चुनौती बना हुआ है।
कुछ बिंदु –
- लोकनीति सी एसडीएस के दिल्ली के युवाओं में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि युवाओं के लिए पिछले दो साल में नौकरी पाना बहुत मुश्किल या असंभव ही था।
- हमारी कामकाजी आयु वाली जनसंख्या 63% है। 2010 से 2019 के बीच रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं रहने वाले युवाओं का औसतन प्रतिशत 29.2% रहा है। यह दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है। दूसरी ओर, उद्योगों में कुशल श्रमिकों की हमेशा कमी बनी रहती है।
- इस कमी का मुख्य कारण हमारी शि़क्षा व्यवस्था है। यह रोजगार मुहैया कराने वाली नहीं है। हाल ही में यूपी पुलिस में चपरासी के एक पद के लिए 3700 पीएचडी धारकों ने आवेदन किया था।
- 2019 में लगभग 53.2% महिला कार्यबल स्वरोजगार में था। 2022 में यह अनुपात बढ़कर 62% हो गया। इनमें से कई का वेतन ही नहीं मिलता था।
- पिछले एक दशक में नियमित वेतनभोगी और स्वरोजगार करने वाले व्यक्तियों की औसत मासिक मुद्रास्फीति समायोजित आय में या तो गिरावट आई है या स्थिर रही है।
- 8% से अधिक आर्थिक वृद्धि में खपत का कमजोर डेटा बताता है कि रोजगार की स्थिति बहुत कमजोर है।
इस चुनावी मौसम में नौकरियों का संकट सभी राजनीतिक दलों की प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन इस पर अभी तक कोई प्रभावी रणनीति नहीं आई है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 28 मार्च, 2024
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