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नैतिकता और बहुमत की रक्षा करता निर्णय
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महाराष्ट्र और दिल्ली में हुई राजनीतिक घटनाओं से राज्यपाल और उपराज्यपाल की भूमिका को लेकर विवाद खड़ा होता रहा है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ का हाल ही का निर्णय काफी महत्वपूर्ण कहा जा सकता है।
कुछ बिंदु –
- 2022 में महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार पर बहुमत का संकट पैदा हो गया था। तत्कालीन राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने ठाकरे को बहुमत साबित करने का आदेश दिया। लेकिन ठाकरे ने बहुमत साबित करने के बजाय पद से इस्तीफा दे दिया था।
- संविधान पीठ ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि शिवसेना के भीतर उपजे असंतोष के आधार पर जून 2022 में उद्धव सरकार को विश्वास मत हासिल करने के लिए कहने का राज्यपाल का फैसला गलत था, और ऑब्जेक्टिव मानदंड़ों पर आधारित नहीं था। उस समय, शिवसेना के किसी भी विधायक ने औपचारिक रूप से यह संकेत नहीं दिया था कि वह पार्टी छोड़ रहा है, या व्हिप के विरूद्ध जाने की योजना बना रहा है।
- दूसरे, न्यायालय ने इस विचार को खारिज कर दिया कि एकनाथ शिंदे गुट विधायक दल में अपना व्हिप जारी कर सकता है। यह अधिकार राजनीतिक दल का था, उसके विधायकों का नहीं है।
हालांकि, पीठ ने उद्धव सरकार को बहाल करने से रोक दिया, क्योंकि विश्वास मत से पहले ही इस्तीफा देने की रणनीतिक गलती हुई थी। अगर ऐसा नहीं होता, तो सरकार को बहाल किया जा सकता था।
दिल्ली का मामला –
दिल्ली में राज्य सरकार ने प्रशासनिक सेवा को नियंत्रित करने के केंद्र के अधिकार को चुनौती दी थी। अपने निर्णय में संविधान पीठ ने सत्ता और जिम्मेदारी के सरल संघीय सिद्धांत पर चलने पर जोर दिया है। पीठ ने निर्वाचित सरकार का पक्ष लेते हुए कहा है कि अगर वह अपने स्वयं के प्रशासनिक अधिकारियों को नियंत्रित नहीं कर सकती है, तो यह संविधान के तहत उसकी शक्तियों का निषेध होगा।
सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और पुलिस जैसे तीन विषयों को केंद्र के अधीन छोडकर, बाकी का प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकार को दे दिया गया है।
एक अन्य प्रश्न रह जाता है कि क्या अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने वाला अध्यक्ष अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय ले सकता है? यह एक बड़ी पीठ को भेजा जा रहा है। इस पीठ को नबाम रेबिया मामले में 2016 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की फिर से जांच करके किसी नतीजे पर आना होगा।
न्यायालय के इस निर्णय में भाजपा के लिए स्पष्ट सबक है कि पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए राज्यपालों को धकेलने की एक सीमा होनी चाहिए। दूसरे, यदि वह दिल्ली में एक सशक्त राज्य सरकार नहीं चाहती है, तो उसे संसद में संशोधन प्रस्ताव लाना होगा।
उच्चतम न्यायालय का निर्णय ठोस है, और केंद्र सरकार को अपनी सीमा में रहने की चेतावनी देता हुआ लगता है। उम्मीद की जा सकती है कि केंद्र सरकार इस निर्णय की मर्यादा को बनाए रखेगी।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित। 12 मई, 2023