म्यांमार की अस्थिरता और भारत

Afeias
06 Jan 2022
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भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में काफी लंबे अरसे से सत्ता संघर्ष चल रहा है। हाल ही में भारत ने इस मामले में अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए, म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए अपना प्रयत्न आगे बढ़ाया है।

भारत के लिए म्यांमार चार संदर्भों में महत्व रखता है –

  1. सुरक्षा
  1. मानवीय मुद्दे
  1. राजनीति/लोकतंत्र, एवं
  1. भू-राजनीतिक

भारत की भूराजनीतिक स्थिति और सुरक्षा –

भारत के लिए म्यांमार का भौगोलिक महत्व इसलिए है, क्योंकि यह भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के भूगोल के केंद्र में स्थित है। दक्षिण-पूर्वी एशिया में म्यांमार ही ऐसा देश है, जो पूर्वोत्तर भारत के साथ थल सीमा साझा करता है। दोनों देश, बंगाल की खाड़ी में भी लंबी समुद्री सीमा साझा करते हैं।

वर्ष 1999 तक भारत का म्यांमार सेना के साथ घनिष्ठ संपर्क रहा है। भारत की थल सीमा के म्यांमार से मिलने के कारण वहां चलने वाली गृहयुद्ध की स्थिति, भारत के लिए खतरा बन सकती थी। गृहयुद्ध के चलते वहाँ की सीमा से अवैध हथियारों की तस्करी की खबरें आ रही थीं। इस अशांति का लाभ उठाते हुए चीन और पाकिस्तान, भारत में अपने विद्रोही समूहों को हथियारों की आपूर्ति किए जा रहे थे।

लोकतंत्र के मुद्दे पर –

भारत के पास, पश्चिमी दुनिया की तरह म्यांमार को अलग-थलग करने का विकल्प नहीं है। निकट पड़ोसी होने के नाते, भारत को लगता है कि वह म्यांमार को उसके संविधान के आधार पर एक संघीय ढांचे की ओर आगे बढ़ा सकता है। इसी के चलते, भारतीय पक्ष ने वहाँ चुनाव कराने के साथ ही राजनीतिक रूप से स्वीकार्य प्रणाली को वापस लाने पर चर्चा फिर से शुरू कर दी है।

आर्थिक व मानवीय मुद्दों पर भारत की मदद –

भारत ने अपनी सीमा से लगते म्यांमार के कई राज्यों में विकास कार्य जारी कर रखे हैं। इन क्षेत्रों में 100 से अधिक परियोजनाओं को पूरा किया जा चुका है। भारत के ‘मेड इन इंडिया’, रक्षा उद्योगों और सैन्य निर्यात को बढ़ावा देने के लिए म्यांमार का महत्व है।

म्यांमार में तख्ता पलट के चलते भागने वाले रोहिंग्या शरणार्थी भारत में लगातार शरण लिए जा रहे हैं। इनके उद्धार के लिए भारत ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में अनेक बुनियादी ढांचे खड़े करके रोहिंग्या व अन्य पिछडे समुदायों की सहायता की है।

जटिल चुनौती – म्यांमार में लोकतंत्र की समर्थक नेता आंग सान सू की को समर्थन देना भारत के हित में है। अमेरिका व पश्चिमी देशों के कड़े रूख को देखते हुए वह वहाँ के जुंटा समूह को सरकार बनाने में सहायता नहीं दे सकता।

साथ ही, भारत-म्यांमार के आर्थिक संबंधों की मजबूती और अपनी सीमाओं पर शांति बनाए रखने के लिए उसे म्यांमार को एक स्थित व स्वायत्तता देश के रूप में खड़े करना होगा।

विभिन्न स्रोतों पर आधारित।

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