मृदा संरक्षण के लिए योजनायें

Afeias
15 Mar 2025
A+ A-

To Download Click Here.

भारत विश्व की भूमि का 2.4% हिस्सा है, जिस पर विश्व की 17.8% जनसंख्या निर्भर है। इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए भरपेट अन्न का प्रबंध हो सके, इसके लिए हरित क्रांति हुई। हरित क्रांति के दौर में क्षेत्र विशेष की पारिस्थितकी दशाओं की उपेक्षा कर फसलें बोई गईं, जैसे; दक्षिण भारत में गेहूँ और पंजाब में धान की फसल।

फसलों का उत्पादन मूल्य पर आधारित हो गया। इससे दलहन और तिलहन की फसलें अनुर्वरक और सीमांत भूमियों पर धकेल दी गईं। फसल-चक्र के थमने से मिट्टी की उर्वरता कम हुई। इससे रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढा। शुरू में तो उत्पादकता बढ़ी, लेकिन बाद में यह बहुत कम हो गई। 1960 के दशक में जहां एक किलो रासायनिक खाद से फसल में 25 किलो की वृद्धि होती थी, वहीं 2014 में यह चार किलो ही रह गई।

मिट्टी की 2 सेमी. मोटी परत बनने में 500 साल लगते हैं। अब तक 9.60 लाख हेक्टेयर भूमि नष्ट हो चुकी है। लगभग 5.3 अरब टन मिट्टी की ऊपरी परत जल-कटाव से नष्ट हो रही है।

मृदा संरक्षण के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय –

  • 19 फरवरी 2015 को ‘स्वस्थ धरा-खेत हरा‘ थीम के साथ ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ शुरु की गई। इससे मिट्टी में मौजूद 12 तत्वों की मात्रा का पता चलता है। उसी हिसाब से उर्वरक प्रयोग करने की सलाह दी जाती है।
  • एक दशक में 24.74 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए जा चुके हैं। 8272 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल सभी प्रमुख भाषाओं में कार्ड सुविधा प्रदान करता है।
  • 2024 तक 1020 स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम को क्रियान्वित कर रहे हैं।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का 2022-23 से मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता नाम से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के एक घटक के रूप में विलय कर दिया गया है।
  • ग्राम स्तरीय मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं ग्रामीण युवाओं और समुदाय आधारित उद्यमियों द्वारा संचालित की जा रही हैं। इनकी संख्या 665 हैं।
  • सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल को भौगोलिक सूचना प्रणाली के साथ एकीकृत कर दिया है।
  • पोषण आधारित सब्सिडी योजना से उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • फसल विविधीकरण के साथ-साथ दलहन-तिलहन पर न्यूनतम समर्थन मूल्य भी बढ़ाया जा रहा है। मोटे अनाज उगाने पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

*****