मताधिकार और नागरिकता का जटिल सवाल

Afeias
23 Aug 2025
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बिहार में मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। विपक्ष की दलील है कि इस समीक्षा की आड़ में निर्धन, अशिक्षित, दलित और वंचित वर्ग को मतदाता सूची से बाहर करने का षड्यंत्र किया जा रहा है। यह सब सत्ताधारी दल के इशारों पर हो रहा है। चुनाव आयोग की दलील है कि मताधिकार के लिए नागरिकता अनिवार्य है और आधार, राशन, पैनकार्ड नागरिकता के प्रमाणपत्र नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि नागरिकता की जाँच का काम तो गृहमंत्रालय का है, न कि चुनाव आयोग का।

चुनाव आयोग ने कहा है कि अनुच्छेद 326 के तहत यह अधिकार हमें प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट ने पुनरीक्षण प्रक्रिया को हरी झंडी दिखाते हुए इस प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आधार, वोटर, राशन कार्ड आदि दस्तावेजों को मान्य करने का सुझाव देते हुए सभी पक्षों को अवगत कराने का निर्देश दिया है। उसने कहा है कि बिना अवसर दिए किसी का नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जा सकता।

मताधिकार और नागरिकता पर सवालों के कारण –

  • नागरिकता संशोधन कानून के अनुसार नागरिकता के लिए विशेष रूप से 2004 के बाद भारत में पैदा हुए व्यक्ति को यह प्रमाणित करना अनिवार्य है कि जन्म के समय उसके माता/पिता भारत के नागरिक थे/हैं। यह वह वर्ग है, जो पहली बार मतदाता बनेगा।
  • इस पुनरीक्षण में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे देशों के लोगों के नाम आने के संकेतों के बीच अब पूरे देश में मतदाता सत्यापन करने की बात हो रही है।
  • नागरिकता अधिनिमय 1955 के अनुसार नागरिकता जन्म व निवास के आधार पर तय होती है। इस अधिनिमय में 2004 के संशोधन के अनुसार 7 जुलाई 1987 के बाद किंतु 7 जनवरी 2004 से पहले भारत में पैदा हुआ व्यक्ति भारतीय नागरिक समझा जाएगा तथा उसके माता या पिता भी भारतीय हों।
  • 1970 में जन्म या मृत्यु प्रमाणपत्र अनिवार्य किया गया। इसीलिए 1970 से पहले के तथा कुछ बाद के लोगों के पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं हैं। पासपोर्ट, राशनकार्ड, आधार, पैन और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे दस्तावेज तो हैं, लेकिन माता-पिता का जन्म प्रमाणपत्र नहीं है।
  • देशी-विदेशी महिला (पुरूष) से विवाह का पंजीकरण अभी तक अनिवार्य नहीं है।
  • अनाथ और लावारिस लोगों की नागरिकता का क्या होगा?
  • 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने एबीसी बनाम दिल्ली राज्य जैसे मामलें में निर्णय दिया था कि मां को अपने बच्चों की संरक्षता के लिए पिता की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। माता या पिता, किसी एक के हलफनामे पर जन्म प्रमाणपत्र मिल जाना चाहिए। लेकिन ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सिस्टम में अभी भी पिता का नाम बताना अनिवार्य है।

नागरिकता संशोधन कानून देर-सबेर अपनी उपयोगिता निभा सकता है। लेकिन न्यायपालिका भी सत्ता का आईना है, जिसमें लोकतंत्र की नाव यथार्य से थोड़ी दूर मगर सुरक्षित दिखाई देती है। कानून का पालन व न्याय व्यवस्था में विश्वास जरूरी है। मताधिकार के लिए नागरिकता अनिवार्य है, लेकिन इसे चुनावी फायदे के लिए राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनाना चाहिए।

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