मानवता के विरूद्ध अपराध और भारत का रुख
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कुछ बिंदु –
- दिसंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवता के विरूद्ध अपराधों (क्राइम एगेंस्ट ह्यूमेनिटी संधि) की रोकथाम और दंड संधि से जुड़ा एक प्रस्ताव पारित किया है।
- ऐसे अपराधों के लिए अभी तक कोई समर्पित संधि नहीं थी, जिससे अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्याय की कानूनी संरचना में जवाबदेही के मामले में कुछ ठोस कदम उठाए जा सके।
- इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का अधिकार क्षेत्र बहुत सीमित रहा है। इससे गैर-सदस्य देशों में मानवता के विरूद्ध हो रहे अपराधों पर दंड देना मुश्किल होता था।
- यह संधि मानवता से जुड़े भुखमरी, लैंगिक भेद, जबरन गर्भाधान, परमाणु हथियारों के प्रयोग, आतंकवाद, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन तथा मूल निवासियों के विरूद्ध अपराध जैसे विषयों को शामिल करने के लिए भी प्रस्तावित है।
भारत का रुख –
- भारत रोम संविधि का पक्षकार नहीं है (जबकि क्राइम अगेंस्ट ह्यूमेनिटी उन गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों में से एक है, जिन्हें रोम संविधि के तहत स्थापित अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय दंडित करना चाहता है)।
- भारत का तर्क है कि केवल सशस्त्र संघर्षों के दौरान किए गए अपराधों को युद्ध अपराध माना जाना चाहिए।
- भारत की इस संधि के प्रति प्रतिक्रिया रोम संविधि और इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के प्रति उसके विरोध के अनुरूप है।
वर्तमान में, भारत के पास अंतरराष्ट्रीय अपराधों को प्रतिबंधित करने वाला कोई घरेलू कानून नहीं है। 2018 में, राज्य बनाम सज्जन कुमार मामले में उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘मानवता के विरूद्ध अपराध और नरसंहार को भारत के आपराधिक कानून का हिस्सा नहीं बनाया गया है। यह एक ऐसी कमी है, जिसे तत्काल दूर करने की आवश्यकता है।’
‘द हिंदू’ में प्रकाशित वर्षा सिंह के लेख पर आधारित। 20 दिसंबर, 2024
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