मानव-विकास के क्षेत्र में नई खोज
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इस वर्ष चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार स्वीडिश आनुवांशिकीविद् स्वांते पाबो पावो को दिया गया है। वे जर्मनी के लीपज़िग में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के निदेशक हैं। वर्तमान में, विज्ञान की सहयोगी और प्रतिस्पर्धात्मक प्रवृत्ति को देखते हुए ऐसा लगता है कि इस क्षेत्र में नोबल पुरस्कार के कई दावेदार हो सकते हैं। पाबो की उपलब्धि और योगदान से जुड़े कुछ बिंदु –
- पाबो मेडिसीन सा फिजियोलाजी में नोबल के एकल विजेता घोषित हुए हैं। 2016 के बाद से किसी अकेले विजेता का होना, उसकी मौलिक और क्रांतिकारी खोज के लिए एक अभिनन्दन है।
- 67 वर्ष के पाबो ने कोपरनिकस के काल में हुई क्रांति जैसी ही क्रांति कर दी है। पाबो ने निएंडरथल जीनोम पर काम करके यह प्रमाणित किया है कि मानव के विकास-चरण में उनका महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह भी कि यूरोपीय और एशियाई लोगों में 1-4% के बीच निएंडरथल डीएनए है। अभी तक यह माना जाता रहा था कि निएंडरथल, कई मानव जैसी प्रजातियों और विकासवादी जाति के हारे हुए लोगों में से थे। लेकिन इस खोज के बाद अब मानव-विकास श्रृंखला में उन्हें भी केंद्र में रखा जा सकेगा।
- इससे सिद्ध हो सका है कि लगभग एक लाख वर्ष पहले ही अफ्रीका में एक प्रजाति मानव जाति की तरह विकसित हो चुकी थी।
- इस खोज से मानव में रोग की प्रवृत्ति और परिस्थितियों के प्रति अनुकूलता (एडेप्टबिलिटी) की अब तक की मान्यता बहुत अधिक प्रभावित होगी।
- पाबो ने काफी एडवांस तकनीकों से जीवाश्म अवशेषों से डीएनए निकाल कर यह खोज की है। जबकि अवशेषों में एक तो डीएनए बहुत कम होते हैं, और आसानी से दूषित हो जाते हैं, इसलिए यह अत्यंत कठिन कार्य है।
- मानव जीनोम के अध्ययन से मिले तुलनात्मक ज्ञान से पता चलता है कि मनुष्य के निकट पूर्वज माने जाने वाले होमो सेपियंस और निएडरथल आठ लाख वर्ष पूर्ण निकटता में रहते थे। वे इस हद तक परस्पर जुड़े हुए थे कि निएंडरथल की स्पष्ट आनुवांशिक छाप उन पर पड़ी हुई है।
- 2008 में किए गए एक शोध से पाबो ने सिद्ध किया कि डेनिसोवा नामक एक बिल्कुल नई मानव प्रजाति का भी अस्तित्व था। डीएनए एनालिसिस से पहली बार किसी ऐसी नई प्रजाति का पता चला है। यह प्रजाति भी मनुष्यों के साथ घुली-मिली थी। दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्र में लगभग 6% मानव जीनोम इसी प्रजाति के हैं।
पाबो की इस खोज ने एक ‘प्रजाति’ होने के अर्थ पर दार्शनिक प्रश्नों की बौछार सी कर दी है। पाबो की जीत भविष्य को प्रेरित करेगी। आशा की जा सकती है कि भारत के जीव विज्ञानी भी इस खोज से प्रेरित होकर गहन प्रश्नों के उत्तर ढूंढ सकेंगे और विज्ञान का उपयोग नई रोशनी प्रसारित करने के लिए करेंगे।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 अक्टूबर, 2022