लेटरल एंट्री पर विवाद
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हाल ही में केंद्र सरकार ने 24 मंत्रालयों के कुछ शीर्ष पदों के लिए लेटरल एंट्री अर्थात पार्श्व प्रविष्टी से भर्ती का विज्ञापन निकाला था। विपक्ष ने यह कहते हुए इसका विरोध किया कि इसमें आरक्षण प्रावधानों को ध्यान में नहीं रखा गया है। विरोध पर सरकार ने यह विज्ञापन वापस ले लिया है। लेकिन विपक्षी विरोध के कारण उतने सही नहीं हैं।
कुछ बिंदु –
- लेटरल एंट्री का पूरा उद्देश्य नौकरशाही प्रणाली को और अधिक कुशल बनाने का प्रयास करना है। इसमें आरक्षण का सवाल नहीं आना चाहिए।
- लेटरल एंट्री से विशिष्ट परियोजनाओं को पूरा करने और नए विचारों के तेजी से कार्यान्वयन की अपेक्षा की जाती है।
- इससे जुड़े पद अस्थायी प्रकृति के होते हैं। यह तीन से पांच साल तक चलते हैं। इसलिए, यहाँ उम्मीदवार की सामाजिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, नौकरी के लिए केवल सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञता प्राप्त करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
वैश्विक अनुभव – सरकार का यह विचार कोई नया नहीं है। अमेरिका में ऐसा कई बार हुआ है, जब बड़ी संख्या में लेटरल एंट्री वाले लोग सरकारी विभागों में काम करते रहे हैं। ब्रिटेन में दशकों से मंत्रियों की सहायता करने वाले विशेष सलाहकारों की नियुक्ति ऐसे ही की जाती है।
विपक्ष का आरोप – विपक्षी दलों का कहना है कि लेटरल एंट्री से आए लोग सरकार में पार्टी के लिए पक्षपाती हो सकते हैं। लेकिन यह केंद्र और राज्यों में नियमित वरिष्ठ नौकरशाहों के लिए भी कहा जा सकता है।
लेटरल एंट्री के लिए योग्यता ही एकमात्र दंड होना चाहिएए क्योंकि इनको सीमित अवधि में बहुत विशिष्ट काम करने होते हैं। एक चुस्त नौकरशाही के लिए इस विचार का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 अगस्त, 2024