कावेरी जल विवाद

Afeias
21 Sep 2016
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cauvery-kaveri-riverDate : 21-09-16

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  • हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कावेरी नदी विवाद के संबंध में कर्नाटक सरकार को आदेश दिया है कि वह दस दिनों तक 15000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु को दे। इस आदेश ने कर्नाटक के किसानों में काफी तनाव पैदा कर दिया है और वे इसका विरोध कर रहे हैं। बाद में न्यायालय ने 15 हजार क्यूसेक को घटाकर 12 हजार कर दिया।
  • यह कावेरी जल विवाद काफी पुराना है। सन् 2007 में कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल ने एक फैसला भी दिया था, जिसमें चार राज्यों-कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल एवं पुडुचेरी के बीच जल के यथानुपात बंटवारे की बात कही गई थी। राज्यों ने इस निर्णय का बहुत स्वागत नहीं किया और यह ज्यों का त्यों बना रहा। इस विवाद पर निर्णय न हो पाने का एक बड़ा कारण ‘कावेरी प्रबंधन बोर्ड’ एवं विनियामक प्राधिकरण के अभाव का होना है। इन सबके बीच केंद्र सरकार ने केंद्र सरकार के कुछ अधिकारियों, केंद्रीय जल आयोग एवं कर्नाटक व तमिलनाडु के कुछ प्रतिनिधियों को मिलाकर एक पर्यवेक्षी समिति का गठन कर दिया, जो इस विवाद को देख रही थी।
  • तमिलनाडु को जल दिए जाने के बावजूद राज्य सरकार का कहना है कि इतना जल साम्बा की फसल के लिए पर्याप्त नहीं है, वहीं कर्नाटक पहले ही अपने सूखे का रोना रो रहा है। उसका कहना है। कि कावेरी एवं उसकी सहायक नदियों में जल-स्तर बहुत कम है।
  • ट्रिब्यूनल के निर्णय की आलोचना इसलिए की जा रही है, क्योंकि उसने नदी किनारे के भूमिगत जल की उपलब्धता को नजरदांज कर दिया है

समाधान क्या हो सकते हैं?

  • सच्चाई यह है कि विवाद के लिए न्याय व्यवस्था पर निर्भर होने की बजाय चारों राज्यों को क्षेत्रीयता की भावना को त्यागकर एक-दूसरे की आवश्यकताओं के अनुरूप नदी के कछारों को लेकर एक संयुक्त नीति बनानी चाहिए।
  • इन राज्यों के कृषकों को भी एक-दूसरे की आवश्यकताओं को समझकर ‘कावेरी-परिवार’ जैसे गैर-राजनैतिक संगठन के माध्यम से हल ढूंढने का प्रयास करना चाहिए।
  • वर्षा की मात्रा से लेकर जलाशय में उसके भंडारण की सूचना के त्वरित आदान-प्रदान से राज्यों के बीच की गलतफहमियों को दूर किया जा सकता है।
  • निष्कर्षतः- कावेरी में जल की मात्रा का बढ़ना तो असंभव है। अच्छा है कि कम जल अवशोषित करने वाली फसलों को प्रोत्साहन दिया जाए। साथ ही जल-प्रबंधन का विकेंद्रीकरण हो।

कई समाचार-पत्रों के सम्पादकीय पर आधारित।

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