लक्षद्वीप का रणनीतिक महत्व
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लक्षद्वीप 36 द्वीपों का एक समूह है। इसका कुल क्षेत्रफल 32 वर्ग किलोमीटर है। यह अरब सागर में करीब 30 हजार वर्ग मील तक फैला हुआ है।
लक्षद्वीप के रणनीतिक महत्व निम्नलिखित हैं –
1) अरब सागर की सीमा यमन, ओमान, पाकिस्तान, ईरान, भारत और मालदीव को छूती है। यह एक ऐसा समुद्री क्षेत्र है, जो कई अहम ‘शिपिंग लेन’ और बंदरगाहों को जोड़ता है। अरब सागर के जहाजों की किसी भी गतिविधि पर नजर रखने के लिए लक्षद्वीप समूहों को एक सुविधाजनक स्थान के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
2) कोच्चि केरल का बंदरगाह नगर है, जो लक्षद्वीप सागर से लगा हुआ है। कोच्चि को अरब सागर और हिंद महासागर का महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार माना जाता है। यह कृषि उत्पादों, औद्योगिक वस्तुओं और कच्चे माल सहित राज्य के आसान निर्यात का महत्वपूर्ण हिस्सा संभालता है।
3) केरल के तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र स्थित है। राकेट प्रौद्योगिकी के डिजाइन और विकास के लिए जिम्मेदार इसरो का यह प्रमुख केंद्र है। इसलिए इन केन्द्रों की सुरक्षा के लिए लक्षद्वीप समूह पर भारत की सामरिक क्षमता का मजबूत होना अत्यंत आवश्यक है।
4) लक्षद्वीप समूह के निकट स्थित नौ डिग्री चैनल, फारस की खाड़ी से पूर्वी एशिया की ओर जाने वाले जहाजों के लिए सबसे सीधा मार्ग है। युद्धकाल में भारत चैनल को अवरुद्ध कर दुश्मन की आपूर्ति लाइनों को काट सकता है।
5) मालदीव से लक्षद्वीप अत्यंत निकट है। मालदीव भारत-विरोधी केंद्र के रूप में उभर रहा है। वह चीन के प्रभाव में है। वहाँ चरमपंथी गतिविधियां भी बढ़ रही हैं। इनका सीधा प्रभाव भारत की आंतरिक सुरक्षा पर पड़ने का अंदेशा है। लक्षद्वीप को उन्नत कर मालदीव एवं अन्य पड़ोसी देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला किया जा सकता है।
6) लक्षद्वीप समूह के आस-पास के लैगून और विशेष आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण मत्स्यपालन और खनिज संसाधन हैं। मॉरीशस के अगलेगा द्वीप को भारत विकसित कर रहा है। लक्षद्वीप के भारत और अगलेगा द्वीप के बीच संपर्क बिंदु बनाने से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को चीन पर सामरिक बढ़त मिल जाएगी।
लक्षद्वीप की रणनीतिक स्थिति तथा चीन एवं क्षेत्रीय बाधाओं के प्रति इसकी संवेदनशीलता इसे एक समर्पित रक्षा द्वीप में बदलने की जरूरत को रेखांकित करती है।
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