लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने वाली हैंडबुक

Afeias
29 Sep 2023
A+ A-

To Download Click Here.

हाल ही में लैंगिक रूढिवादिता का मुकाबला करने के लिए उच्चतम न्यायालय ने एक हैंडबुक जारी की है। यह विशेष रूप से महिलाओं के बारे में पुराने और गलत विचारों को बढ़ावा देने वाले वैकल्पिक शब्द और वाक्यांश प्रदान करती है।

कुछ शब्द और वाक्यांश –

  • ‘व्यमिचारिणी’ के स्थान पर; वह महिला जो विवाहेतर यौन संबंधों में संलग्न है। इसी प्रकार ‘अफेयर’ के लिए ‘विवाह से बाहर का रिश्ता’ जैसे शब्दों की पैरवी की गई है।
  • न्यायालय का कहना है कि यह मानना गलत है कि महिलाएं “अत्यधिक भावुक, अतार्किक होती हैं, और निर्णय नहीं ले सकती है।”
  • हैंडबुक में कहा गया है कि यह भी एक रूढ़िवादी धारणा है कि सभी महिलाएं बच्चे पैदा करना चाहती हैं। या फिर यह कि महिलाएं अधिक पालन-पोषण करने वाली होती हैं, और दूसरों की देखभाल करने के लिए अधिक उपयुक्त होती है, और उन्हें घर के सभी काम करने चाहिए।

प्रभाव –

  • न्यायालय का मानना है कि इस प्रकार के शब्दों और वाक्याशों के प्रयोग से संविधान के द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है। संविधान ने न्यायालयों को समाज में परिवर्तन लाने की शक्ति दी है। और यह हैंडबुक ऐसी ही एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शिका है, जो परिवर्तनकारी प्रयासों को आगे बढ़ाती है।
  • व्यवहार में बदलाव के लिए समाज, पुलिस और शिक्षा प्रणाली को अपने विचार और पद्धति में परिवर्तन लाना होगा, क्योंकि यही वे तीन आधार हैं, जो ऐसी रूढिवादिता को बढावा देते आए हैं।
  • उम्मीद है कि इससे लैंगिक रूप से संवेदनशील न्यायपालिका में अधिक महिलाएं, उत्पीड़न के डर के बिना न्यायालय पहुँच सकेंगी।
  • साथ ही इससे जीवन के अन्य क्षेत्रों में दिखाई जा रही लैंगिक असंवेदनशीलता पर भी कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

कानून के बाहर भी भाषा और व्यवहार में न्यायालय के इस महत्पूर्ण संदेश को आत्मसात करके, उसका अभ्यास किया जाना चाहिए। सभी के लिए समान अधिकारों की खोज में न्यायालय का यह कदम सराहनीय है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 26 अगस्त, 2023

Subscribe Our Newsletter