
लद्दाख की मांगों पर ध्यान
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2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया था। इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है। इसका स्वागत किया गया, क्योंकि लद्दाखियों को लगता था कि श्रीनगर की सरकारों ने उनके क्षेत्र के प्रति पक्षपात किया है। नई व्यवस्था ने भी उनकी स्थानीय समस्याओं का समाधान नहीं किया और उन्हें भूख हड़ताल करनी पड़ी। इसके चलते केंद्र सरकार ने क्षेत्र के लिए कुछ नई व्यवस्था की है। चुनौतियां फिर भी बाकी हैं –
- लद्दाख के लिए नई आरक्षण और अधिवास नीति प्रस्तुत की गई है।
- सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 85% आरक्षण की गारंटी दी गई है।
- स्थानीय लोग लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं।
- चीन और पाकिस्तान के साथ लद्दाख की सीमा लगती है। यहाँ की स्थिति अतिरिक्त सुरक्षा चुनौतियां लेकर आती है। रक्षा बुनियादी ढांचे को पारिस्थितिकी और लोगों की आकांक्षाओं में सामंजस्य के साथ तैयार किया जाना चाहिए।
- इस क्षेत्र में ग्लेशियर लगातार पीछे हटते जा रहे हैं। ये प्रति वर्ष 12-20 मीटर पीछे हट रहे हैं। इस नाजुक पारिस्थितिकी के संरक्षण पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार ने फिलहाल बेरोजगारी के मुद्दे पर एक कदम उठाया है। लद्दाख की चुनौतियों का सामना संवेदनशीलता के साथ किया जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 6 जून, 2025