खेलों में समान पारिश्रमिक
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हाल ही में न्यूजीलैंड क्रिकेट ने अपनी महिला क्रिकेटरों को पुरूष क्रिकेटरों के समान पारिश्रमिक देने का निर्णय किया है। यह निर्णय घरेलू और अंतरराष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर समान रूप से लागू किया जाएगा। न्यूजीलैंड क्रिकेट का यह निर्णय अमेरिका की उस खबर के चार महीने बाद लिया गया है, जब वहाँ की महिला फुटबॉल खिलाड़ियों ने समान पारिश्रमिक के लिए फेडरेशन के साथ लंबी लड़ाई जीती है। ये दोनों ही समाचार पूरी दुनिया के लिए गेम चेंजर हो सकते हैं। इन निर्णयों से और अधिक लड़कियों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। लेकिन संघर्ष से मिली जीत आसान नहीं कही जा सकती है। भारतीय संदर्भों में दोनों के असमान पारिश्रमिक के लिए अनेक तर्क दिए जाते हैं –
- टेनिस के खेल में पुरूषों को पांच सेट जबकि महिलाओं को तीन सेट खेलने होते हैं।
- क्रिकेट में असमान पारिश्रमिक के मुद्दे को दोनों की बाजार रेटिंग का हवाला देकर टाल दिया जाता है।
लेकिन अगर हम महिलाओं की परिस्थितियों, खेल में उनको दिए जाने वाले असमान अवसर तथा खेलने के समय में कटौती आदि को देखें, तो सोच बदल सकती है। दूसरी ओर, महिलाओं को यह समझने के लिए मजबूर किया गया है कि खेल में भागीदारी उनके लिए नहीं है।
समय की मांग है कि ऐसी बाधाओं को दूर किया जाएए और महिलाओं की खेल तक पहुँच को और आसान बना दिया जाए। पारिश्रमिक की असमानता को कम करना निष्पक्षता और सम्मान से भी जुड़ा हुआ है। यह महिलाओं के खेलों में किए जा रहे प्रयास और उत्कृष्ट प्रदर्शन को पहचान देना भी है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 9 जुलाई, 2022