केप्टिव खदानों का अंत स्वागतयोग्य है

Afeias
15 Jul 2021
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Date:15-07-21

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हाल ही में कोयला और खान मंत्री ने लोकसभा में खान और खनिज (विकास और विनियमन संशोधन विधेयक 2021 प्रस्‍तुत किया। इस प्रस्ताव में नए केप्टिव खान के प्रावधान को रद्द कर दिया गया है। इसके पीछे दो कारण हैं। एक तो, जिन उद्यमों के पास कैप्टिव खदाने हैं, उन्‍हें उन उद्यमों पर अनुचित प्रतिस्‍पर्धातमक लाभ होता है, जिनके पास कैप्टिव खदानें नहीं हैं। दूसरे केप्टिव खदानें अपनी इष्‍टतम क्षमता का उत्‍पादन नहीं करती हैं, और न ही वे इष्‍टतम दक्षता पर उत्‍पादन करती हैं।

कैप्टिव खदानों से राजकोष को राजस्‍व का कोई सीधा नुकसान नहीं होता है। कैप्टिव रूप से खनन किए गए खनिज भी इस उद्देश्‍य के लिए अधिसूचित दर पर किसी अन्‍य खनिज के समान रॉयल्‍टी देते हैं। यह अर्थव्यवस्था पर दो प्रकार से अप्रत्‍यक्ष लागत का बोझ डालता है। एक तो यह कैप्टिव खदान धारकों और गैर कैप्टिव खदान धारकों के बीच प्रतिस्‍पर्धा में असमानता को जन्‍म देता है। दूसरे, कैप्टिव खदान से इष्‍टतम क्षमता का उत्‍पादन न होने से खनिजों की कमी के चलते आयात का बोझ बढ़ता है।

कैप्टिव खनन की प्रथा को चरणबद्ध तरीके से समाप्‍त किया जा सकता है। ऐसे खान मालिकों को बाजार से खनिज खरीदने के लिए खुद को समायोजित करने के लिए उचित अवधि दी जानी चाहिए। इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए कैप्टिव खानों के मौजूदा धारकों को प्रोत्‍साहन के आधार पर या कानून में बदलाव के आधार पर स्‍वेच्‍छा से पट्टे छोड़ने के लिए राजी किया जाना चाहिए।

कैप्टिव खानों को विशेषज्ञ या पेशेवर खनिकों को पुनः सौंपने से संबंधित खनिजों के उपयोगकर्ताओं को भरपूर आपूर्ति से कम कीमतों का लाभ मिल सकेगा।

संशोधन में कोयला और अन्‍य खनिजों के कैप्टिव खनिकों को अपने उत्‍पादन का 50% तक बेचने की अनुमति देने का प्रस्‍ताव है। वर्तमान में धारकों को केवल स्‍वयं के औद्योगिक उपयोग के लिए खानों से निकाले गए कोयले और खनिजों के उपयोग की अनुमति है।

यदि यह संशोधन पारित हो जाता है, तो कानूनी चुनौतियों का सामना करने की संभावना है। यह विधेयक एक प्रकार से राज्य सरकारों की विवेकाधीन शक्ति को छीनता हुआ प्रतीत होता है। संशोधन में केन्‍द्र सरकार को खनन पट्टे के अनुदान के लिए नीलामी या पुनः नीलामी प्रक्रियाओं का संचालन करने के लिए सशक्त बनाए जाने का प्रस्‍ताव है। इससे केन्‍द्र- राज्य का खिंचाव बढ़ सकता है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 25 जून, 2021