प्रत्येक बूंद का महत्व

Afeias
16 Jul 2021
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Date:16-07-21

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भारतीय जलवायु में मानसून एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस वर्ष भारतीय मौसम विभाग ने सामान्य मानसून का पूर्वानुमान दिया है। परंतु बढ़ता तापमान और लू का चलना चिंता के विषय हैं। ऐसी आशंका है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून का पैटर्न बदल रहा है। भारत जैसे कृषिप्रधान देश के लिए ऐसा परिवर्तन चिंताजनक है। यह भारत की आर्थिक स्थिति को विषम बना सकता है। इससे जुड़ें कुछ तथ्य  –

  • भारत में विश्व की 18% जनसंख्या निवास करती है, जबकि मीठे जल संसाधन मात्र 4% हैं।
  • इसके संरक्षण और विवेकपूर्ण उपयोग के लिए जल संबंधित ऐसी सार्वजनिक नीति की आवश्यकता है, जिसके प्रभाव दूरगामी हों।
  • सार्वजनिक निवेश में अपर्याप्तता के कारण नहरों जैसी सतही सिंचाई परियोजनाओं के वितरण में कमी से बोरवेल के माध्यम से भूजल सिंचाईं में वृद्धि हुई है। कृषि क्षेत्र में दी जाने वाली नि: शुल्‍क बिजली भी इसको बढ़ावा दे रही है। नतीजतन सिंचाई में बोरवेल की हिस्‍सेदारी 1960-61 में जहां 1% थी, वह आज बढ़कर लगभग 64% हो गई है।
  • सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जाने वाला पैटर्न बेहद अक्षम है। प्रमुख खाद्य फसल की एक इकाई का उत्पादन करने के लिए भारतीय किसान अपने चीनी समकक्षों की तुलना में दो से चार गुना अधिक पानी का उपयोग करते हैं।
  • भारतीय मौसम विभाग द्वारा पिछले साल 30 साल की अवधि में मानसून परिवर्तनशीलता का एक अध्ययन किया गया है। यू. पी. , बिहार और पश्चिम बंगाल ऐसे पांच राज्यों में से हैं, जिन्होंने दक्षिण-पश्चिम मानसून में उल्लेखनीय कमी देखी है। ऐसे में हमारा कृषि मॉडल विफल होता दिखाई देता है।

समाधान –

  • बिजली नीति पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
  • भारतीय कृषि को नई, कम जल-गहन प्रौद्योगिकी को तेजी से अपनाने की जरूरत है।

भारत की जल चुनौती दुर्गम नहीं है। पानी का अधिक कुशलता से उपयोग करने वाली सूक्ष्‍म सिंचाई प्रणाली को प्रोत्साहित करने के लिए चल रही भारत सरकार के प्रयासों को दोगुना करने की आवश्यकता है। हमें प्रत्येक बूंद से अधिक प्राप्ति की आवश्यकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 जून, 2021

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