भारत को रेयर अर्थ एलीमेंट्स का पॉवरहाउस बनना चाहिए

Afeias
01 Aug 2022
A+ A-

To Download Click Here.

रेयर अर्थ एलीमेंट्स या दुर्लभ पृथ्वी तत्व, 17 रासायनिक पदार्थों का ऐसा समूह है, जिनकी मांग आधुनिक विनिर्माण में कई महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों के लिए बढ़ रही है। इनमें स्कैडियम, यूरोपियम, होल्मियम आदि तत्व आते हैं। इनमें से अधिकाश तत्वों के लिए भारत लगभग 100% आयात पर निर्भर है। दिलचस्प बात यह है कि भारत के पास इनमें से कई का बड़ा भंडार हैं। लेकिन अभी तक इनके खनन को अनुमति नहीं दी गई है। सरकार इस हेतु प्रस्ताव ला रही है।

रेयर अर्थ एलीमेंट्स के विभिन्न उपयोग –

यद्यपि इन तत्वों का उपयोग कम मात्रा में किया जाता है, लेकिन इसमें गुण ऐसे होते हैं, जो इसे जरूरी बनाते हैं। उदाहरण के लिए –

  • नियोडियिम, स्थायी चुम्बकों के लिए महत्वपूर्ण घटक है। इलेक्ट्रिक वाहन, ट्रैक्शन और विंड टरबाइन के लिए यह आवश्यक हो जाता है। फिलहाल इनके सीमित विनिर्माण के चलते इस तत्व की मांग कम है। 2025 तक इसकी मांग में 6-7 गुना तेजी आने की संभावना है।
  • इसी प्रकार डिस्प्रोसियम भी एक महत्वपूर्ण घटक है।
  • एलईडी बल्ब और रंगीन टेलीविजन स्क्रीन के लिए यूरोपियम आवश्यक है।
  • समैरियम का उपयोग ऑप्टिकल लेजर्स के लिए किया जाता है।

इसके अलावा हाई-टेक मेडिकल प्रौद्योगिकी में भी कई घटकों का उपयोग किया जा रहा है।

भारत में उत्पादन क्यों नहीं ?

  • भारत में इन घटकों को वगीकृत परमाणु तत्व माना जाता है। इसलिए ये अन्य खनिजों के बराबर नहीं हैं।
  • वास्तविकता यह है कि ये प्रकृति में कोई दुर्लभ तत्व नहीं हैं। इनकी भरमार होती हैं। परंतु वैश्विक स्तर पर इनको एक जगह से निकालना दुष्कर होता है।
  • भारत में इनकी उपलब्धता समुद्री रेत और चट्टानों में मोनोजाइटस के रूप में है। उन्हें परमाणु खनिजों के रूप में वर्गीकृत करने का कारण यह है कि इनमें से कुछ तत्व थोरियम और यूरेनियम के साथ पृथ्वी की सतह पर पाए जाते हैं। ये दोनों ही तत्व रेडियोधर्मी खनिज हैं। इस प्रकार दुर्लभ तत्व के लिए खनन सरकारी कंपनियों के लिए आरक्षित है। इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड और केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड दो ऐसी कंपनियां हैं, जो इनका खनन सीमित क्षमता में कर पाती हैं। यही कारण है कि भारत आयात पर निर्भर है।

वैश्विक उपलब्धता –

  • कुछ साल पहले तक चीन ही इन दुर्लभ तत्वों की आपूर्ति के 90% भाग को नियंत्रित करता था। अब अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया भी आगे आ गए हैं। चीन द्वारा की जाने वाली आपूर्ति 60% पर आ गई है।
  • भारत के पास आस्ट्रेलिया की तुलना में अधिक भंडार है, लेकिन वह चीन, रूस और वियतनाम से पीछे है।

आगे का रास्ता –

  • खनन मंत्रालय ने हाल ही में 17 दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को परमाणु खनिजों के दायरे से बाहर ले जाने का प्रस्ताव दिया है, ताकि निजी संस्थाओं और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को इस क्षेत्र में लाया जा सके।
  • रेडियोधर्मी खनिजों की उपस्थिति और उनके उपयोग के बारे में चिंता जायज है, लेकिन इन चिंताओं को पूर्ण प्रतिबंध के बजाय विनियमन के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए।
  • एक बार रेयर अर्थ निकालने के बाद अयस्क-चट्टान को अधिकृत सरकारी एजेंसी को वापस करने का नियम बनाने से निजी कंपनियों को नियंत्रण में रखा जा सकता है।

रेयर अर्थ को नहीं निकालने से भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना समय की मांग है। अंतः मंत्रालय के इस प्रस्ताव पर सकारात्मक रूप से विचार किए जाने की उम्मीद की जा सकती है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित धीरज नैय्यर के लेख पर आधारित। 27 जून, 2022

Subscribe Our Newsletter