कानून के प्रवर्तन को प्रभावशाली बनाने हेतु न्यायिक रिक्तियों को भरना जरूरी
Date:23-08-21 To Download Click Here.
उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में बढ़ती रिक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट की बेचैनी बढ़ती जा रही है। नियुक्तियों के लिए सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार करने में भारत सरकार की देरी से स्थिति बदतर होती जा रही है। उदारीकरण के बाद के कुछ दशकों में उच्च न्यायालयों की केस-निपटान की सीमा को देखते हुए विशेष मामलों के ट्रिब्यूनल बनाए गए थे। लेकिन न तो उच्च न्यायालयों की लंबित समस्याओं का समाधान किया गया है, और न ही न्यायाधिकरणों ने अपने लक्ष्य हासिल किए हैं।
ट्रिब्यूनल में नियुक्तियों के लिए वैधानिक चयन समितियों का नेतृत्व करने वाले उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों ने वर्ष 2017 से की गई कम-से-कम 100 सिफारिशों की नियुक्ति न होने तक काम न करने का फैसला किया है। ये नियुक्तियां एन सी एल टी, एन सी एल ए टी जैसी अनेक न्यायिक एजेंसियों में की जानी हैं। उच्च न्यायालयों में होने वाले इस ट्रिब्यूनल विवाद का कारण 1098 स्वीकृत पदों में से 455 का रिक्त होना है।
नियुक्तियों में देरी करने वाले सरकार एवं सर्वोच्च न्यायालय के बीच विवाद की शुरूआत तब हुई, जब 2015 में न्यायालय ने 124(ए) संशोधन, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के गठन और 2017 के बाद से ट्रिब्यूनल के पुनर्गठन के प्रयासों को अस्वीकृत कर दिया था।
न्यायिक नियुक्तियों में एनजेएसी के बाद कॉलेजियम का मार्गदर्शन करने के लिए प्रक्रिया ज्ञापन अभी भी लटका हुआ है। हालांकि , कॉलेजियम सिस्टम भी कारगर सिद्ध नहीं हुआ है। अनेक मामलों में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के रिश्तेदारों को बिना योग्यता के ही महत्वपूर्ण पदों पर पदोन्नत कर दिया गया है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई इसका उदाहरण हैं।
इसी वर्ष जुलाई में उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधिकरणों में सुधार करने वाले 2021 के अध्यादेश के प्रावधान पर फैसला सुनाया, क्योंकि यह अध्यादेश शक्तियों के पृथक्करण और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांत के विपरीत था।
उच्चतम न्यायालय के फैसले उसकी दृष्टि से सही हो सकते हैं, परंतु महामारी के बाद सामान्य स्थिति वापस आने के साथ ही, रिक्तियों से अदालत और न्यायाधिकरणों को पैर टिकाने में मदद नहीं मिलेगी। बुनियादी ढांचे की तरह, अदालतें और न्यायाधिकरण भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। व्यापार में सुगमता के लिए मुकदमेबाजी के निपटारे की गति और न्याय की गुणवत्ता का बहुत महत्व है। अहंकार और प्रक्रियात्मक युद्धों को समाप्त कर, न्याय की गति में तेजी लाई जानी चाहिए।
समाचार पत्रों पर आधारित। 11 अगस्त, 2021