कचरे के जटिल प्रबंधन को कैसे आसान बनाया जाए
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- भारतीय शहरों में पहाड़ों की बड़ी समस्या है। सड़े हुए कचरे से मीथेन और लीथेट निकल रहा है। यह हवा और भूमि, दोनों को खराब कर रहा है।
- कई जगह कचरे से ऊर्जा बनाने वाले संयंत्र लगाए गए हैं। ये कचरे को कम करने, बिजली पैदा करने और राख बनाने के लिए लगाए गए हैं। लेकिन ये भारत के लिए अनुपयुक्त हैं, क्योंकि हमारे यहाँ जैविक और गीले कूड़े का बड़ा हिस्सा है, जिसे सूखने में बहुत समय लगता है।
- इन संयंत्रों के दुष्प्रभाव भी होते हैं। इसके चलते आसपास के वातावरण में हानिकारक तत्व फैलते हैं। इसलिए भारत सहित यूरोप और अमेरिका में भी इनका विरोध हो रहा है। दुर्भाग्यवश, इन्हें भारत में जगह-जगह लगाया जा रहा है।
- भारत के लिए कचरे को विकेंद्रीकृत (सेग्रीगेशन) करना ही बेहतर तरीका है। अलग-अलग करने के साथ ही गीले कचरे को खाद में बदल दिया जाना चाहिए।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम में अपशिष्ट की प्रत्येक श्रेणी स्पष्ट है। अलापुझा जैसे शहर इसके सफल उदाहरण है।
- इस पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में स्रोत पर कचरा उठाने वालों से लेकर कबाड़ी और रीसाइकिलंग प्रबंधकों को पेशेवर बनाने की जरूरत है।
- भारत के सामने कचरे से जुड़ी कुछ विशेष चुनैतियों में कचरे की मात्रा, जातिवादी समाज, पश्चिमी देशों से कचरे के ढेर की खरीदी आदि मुख्य हैं।
- कचरे के संकट से निपटने के लिए केवल रीसाइकिलंग या नगर पालिका की बेहतर व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। ज्यादातर कचरा उद्योग पैदा कर रहे हैं। कंपनियों को औद्योगिक कचरे की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
यूरोप से लेकर अमेरिका और जापान तक में कचरे और सीवेज की कठिन चुनौतियां हैं। इसके लिए हमें अपनी व्यवस्था के अनुकूल उपाय ढूंढने पडेंगे।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 12 नवंबर, 2024
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