जीवन की गुणवत्ता घटाता वायु प्रदूषण
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आँकड़ों से पता चलता है कि भारत दुनिया के कुछ सबसे अधिक प्रदूषित शहरों का घर है। इससे छुटकारा पाने के लिए हमें शहरों का विकास नागरिकों के सुझावों और सहयोग से करने की जरूरत है। प्रदूषण के बढ़ते स्तर, उसके प्रभावों और संभावित समाधान पर कुछ बिंदु –
- द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट शिकगो की एक रिपोर्ट बताती है कि विश्व के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 भारत में हैं।
- प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य पर इतना बुरा प्रभाव पड़ रहा है, कि एक औसत भारतीय का जीवन 5.3 साल कम हो रहा है। दिल्लीवासियों के लिए यह 11.9 वर्ष है।
- प्रदूषण के कारण आंखों, नाक और गले में जलन, खांसी, दम घुटना, दमा, और हृदय संबंधी बीमारियाँ बढ़ रही हैं।
- चिंता की बात यह है कि खराब हवा गंगा के मैदानी इलाकों तक ही सीमित नहीं रही है। देश के बहुत से तटवर्ती शहरों में भी वायु गुणवत्ता बहुत खराब है।
भारतीय शहरों में समस्या इतनी गंभीर क्यों है?
- गंगा के मैदानी इलाकों में इसका कारण मौसम में बदलाव, पराली के जलने और हवा की गति के धीमी होने को माना जाता है।
- भारतीय शहरों में विकास का फोकस रियल एस्टेट पर है। चौड़ी सड़कें बनाई जाती हैं, जिस पर बड़े ईंधन खपत वाले वाहन चलते हैं। पेड़ों और पदयात्रियों के लिए जगह नहीं छोड़ी जाती।
- सड़क की धूल, क्रांकीट, प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयाँ और वाहनों से निकलता धुआँ भी प्रमुख कारक हैं। 60% प्रदूषण का कारण वाहनों के धुएं से माना जा रहा है। भारत का ऑटोमोबाइल बाजार 100 अरब डॉलर से अधिक का है। इसके और भी बढ़ने की संभावना है।
संभावित समाधान –
- प्रदूषण पर नियंत्रण रखने के लिए शहरी विकास की समग्र रणनीति में एक आदर्श बदलाव की जरूरत है। इसे धारणीय और पारिस्थितिकी अनुकूल बनाया जाना चाहिए।
- शहरों में सार्वजनिक परिवहन, साइकिल पोस्ट के निर्माण के साथ साइकिल लेन, पैदल पथ और मानव संचालन प्रक्रियाओं के माध्यम से निर्माण गतिविधियों को विनियमित करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
- कुछ शहरों में ‘नो कार डे’ रखा जाता है। इस प्रकार के उदाहरण को अमल में लाया जा सकता है। इन विशेष दिनों में नेता और कुछ बड़ी हस्तियाँ भी सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करके लोगों को प्रेरणा दे सकते हैं।
- ग्रीन वाहन नीति को तेजी से आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
- दिल्ली की तरह ही अन्य बड़े शहरों में ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान लाया जाना चाहिए।
- औद्योगिक प्रदूषण के प्रति जीरो टॉलरेन्स हो। रियल टाइम मॉनिटरिंग होनी चाहिए।
नगर प्रशासन संरचना के माध्यम से लोगों को शहर की शासन व्यवस्था से जोड़ना जरूरी है। प्रदूषण गाइड, विभिन्न विभागों और एजेंसियों के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं तत्परता से बनाई जानी चाहिए। गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोग प्रदूषण के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं। लेकिन यही लोग सबसे भारी कीमत चुकाते हैं। उन्हें बेहतर जीवन की जरूरत है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संदीप चाचरा और टिकेन्द्र सिंह पंवार के लेख पर आधारित। 6 नवंबर, 2023
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