जातिगत असमानता
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परिचय – किसी अर्थव्यवस्था में असमानता की बात होने पर सबसे पहले धन-संपत्ति का विचार आता है। लेकिन सामाजिक प्रभाव भी आर्थिक असमानता पर प्रभाव डालते हैं। लोगों का मानना है SC, ST, OBC तथा अन्य में जो अधिक गरीब हैं, उन पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए। इन सब के बीच हमें यह भी समीक्षा करनी चाहिए कि समान परिस्थितयों में लोगों को कितने समान अवसर मिलते हैं?
- भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण से हमें यह ज्ञात होता है कि निचली जातियों के लोगों की वार्षिक आय देश की शेष आबादी से 21.1% कम है।
- उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर भी निम्न जाति की आय उच्च जाति से 10.3% कम है।
- यदि राज्य में प्रति व्यक्ति वास्तविक G.D.P. 10000 रुपये बढ़ती है, तो जाति आधारित आय असमानता कम होती है, पर खत्म नही होती।
- निम्न जाति के कारोबार मालिकों को समान सामाजिक पूँजी (अन्य जाति के लोगों से व्यक्तिगत संपर्क) होते हुए भी सामाजिक-आर्थिक नुकसान उठाने पड़ते हैं।
- जिनके माता-पिता अनियमित रोजगार में लगे होते हैं, उन्हें ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है, क्योंकि शिक्षा न मिल पाने के कारण उन्हें भी अनियमित रोजगार करना पड़ता है।
- समान जाति में विवाह होने की रूढिवादी सोच भी जातिगत असमानता को बढावा देती है। वर्ष 2005 में सिर्फ 6% विवाह ही अंतर्जातीय थे।
- डॉ৹ भीमराव आंबेडकर स्कीम फॉर सोशल इंट्रीगेशन थ्रू इंटरकास्ट मैरिज में अनुसूचित जाति के किसी व्यक्ति का विवाह अन्य जाति में होने पर 2.5 लाख रुपये प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इसका लाभ 17000 लोगों ने उठाया।
- यद्यपि शहरीकरण के कारण परंपरागत जाति प्रथा के दोष कम हुए हैं, लेकिन इसका दीर्घकालिक समाधान तभी होगा, जब जातिगत भेदभाव खत्म होगा।
- निम्न जातियाँ; जो सामान्य से एक पायदान ऊपर होती हैं, वे इन रूढियों का मुकाबला करके बाहर निकल पाती हैं।
- समान स्तर पर शिक्षित व योग्य होने पर भी उन्हें असमान व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
जातिय समानता लाने के लिए हमें विरासत में जाति का महत्व बहुत कम करना होगा। ऐसा सामाजिक परिवेश हो, जिससे अधिक से अधिक परिवार अंतर्जातीय तरीके से जुड़े।
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